लेखक की कलम से

बाबुल पुकारे बिटिया …

सूना सूना है घर आंगन फिर  महका जा।

बाबुल पुकारे बिटिया एक बार  आजा।।

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जब तू आई अंगना घर खुशियां छाई ।

दादा – दादी ने बांटी अनगिन बधाई।।

वैसी ही बधाई आजा

फिर तू बंटा जा

बाबुल पुकारे बिटिया एक बार  आजा

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छुन छुन बजती थीं तेरी पैरो की पायल।

सुनने को धुन ये सब रहते थे कायल ।।

तरसे है कान मेरे

वो धुन तू सूना जा

बाबुल पुकारे बिटिया एक बार  आजा।।

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तेरी सावन की बातों को नहीं कोई भूला।

रोए वो डाली जिस पर डलता था झूला।।

छोटे भाई की जिद्द है तू आकर झूला जा

बाबुल पुकारे बिटिया एक बार  आजा।।

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तीज त्योहार बीता राखी भी अाई।

राह निहारे तेरे भाई की कलाई ।।

सूनी कलाई राखी

फिर तू सजा जा

बाबुल पुकारे बिटिया एक बार  आजा।।

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छुप छुप रोए बाबुल धीर धरे ना।

मन की पीड अपनी किसी को कहे ना।।

दुखी तेरे बाबुल को

आ धीर  बंधा जा

बाबुल पुकारे बिटिया एक बार  आजा।।

सूना सूना है घर आंगन फिर

महका जा।

बाबुल पुकारे बिटिया एक बार  आजा।।

 

©रमाकांत सहल, झुंझुनूं, राजस्थान        

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