लेखक की कलम से

आंतरराष्ट्रीय हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई …

अब तो हर चीज़ के लिए एक खास दिवस रखा गया है तो हिंदी दिवस भी मना लें एक दिन के लिए ही सही, आपको नहीं लगता कि हिंदी दिवस एक मजाक बन कर रह गया है। 

हिंदी बोलने से कतराने वाले बहुत देखें हैं,

आजकल की पीढ़ी मातृभाषा बोलने में शर्माती हैं, पड़ोस वाली अंग्रेजी जो पसंद है और जिसे अंग्रेजी नहीं आती वो खुद को तुच्छ ओर बौना समझते हैं।

तो फिर हिंदी दिवस का क्या महत्व.!

न तो हिंदी में कोई कार्यालयों में काम काज होता है और न ही विद्यालयों में बच्चों को हिंदी का सही ज्ञान दिया जाता है।

ज्यादातर नियम, कानून या अन्य काम या किताबें इत्यादि अंग्रेजी भाषा में ही होते हैं।

माना की अंग्रेजी जरूरी है, अब तो कहीं भी जाओ समझने समझाने का ज़रिया बन गई है अंग्रेजी पर अपनी भाषा का खून करके पालना-पोषना थोड़ा ज़्यादा है।

किसी को कोई भी आवेदन पत्र लिखना होता है तो बस अंग्रेजी में जाड़ देते हैं।

फरजियाती तौर पर हर जगह हिंदी लिखने-बोलने का कानून लगना चाहिए

क्या विदेशी लोग हमारी हिंदी अपनाते हैं ?

तो हम क्यूँ आज भी गुलाम बने रहे हैं आज कल नेता लोग भी अंग्रेजी में भाषण देते हैं एक मोदी ने कुछ हद तक हिंदी बोलने की परंपरा को आगे बढ़ाया है।

बस साल में एक दिन मना लिया फिर अगले दिन हिंदी दिवस समाप्त, पड़ोसी की गोद में जाके बैठ जाना है।

इसमें हमारे समाज का भी दोष है, हमारी अधिकार भाषा को महत्व ही नहीं दिया, कुछ राज्यों में तो हिंदी बोलने वालों से लोग मुँह मोड़ते हैं, हिंदी के प्रति अनमने व्यवहार के चलते वो ना किसी की बात समझते हैं ना अपनी बात समझा पाते हैं, हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है तो इतनी उपेक्षित क्यूं?

एक देश और एक समाज पर भाषा एक नहीं, भाषा वह माध्यम है जिससे कोई भी समाज अपना ज्ञान, संस्कृति और संस्कार भावी पीढ़ियों तक पहुँचाता है। अपनी राष्ट्रभाषा को आगे बढ़ाने के लिए संविधान, मानवाधिकार तथा जितने भी संस्थान हैं, उन्हें गंभीर रुप से ये काम करना चाहिए।

सोचो-समझो हमारा समाज कहाँ जा रहा है ? हिंदी दिवस के अवसर पर, हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में लगे हिंदी प्रेमियों को हार्दिक बधाई।

प्यार से बोलो, जय हिंद

©भावना जे. ठाकर

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