लेखक की कलम से

संस्मरण एवं श्रद्धांजलि, “मेरी आवाज़ ही पहचान है” ….

माँ शारदे की प्रिय पुत्री स्वर कोकिला लता मंगेशकर! कोई रिश्ता नहीं..कोई व्यक्तिगत जान-पहचान नहीं..कभी पास तो क्या दूर से भी सामने नहीं देखा। बस आवाज़ ही तो सुनी थी!! फिर भी क्यूँ आज सुबह से मन के भीतर एक तूफ़ान-सा चल रहा है..जैसे कोई बहुत क़रीबी, कोई अपना हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया है! शायद इस लिए क्योंकि वह आवाज़ मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी थी। कभी कोई भजन, तो कभी कोई पुराना फ़िल्मी गीत…उनकी आवाज़ मन की तपती धरती पर बारिश की बूँदों जैसा प्रभाव छोड़ती थी। आज की व्यस्त और स्वार्थ से भरी दुनिया में जहाँ किसी से दिल की बात कहना-सुनना व्यर्थ लगता है, वहाँ उनके गाने ऐसा सुकून देते थे मानो खुद ने खुद से बात कर ली हो! मन के जैसे भाव वैसा ही गाना चला लिया।

बहुत खुश हुए तो “आजकल पांव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे” और परेशानी में “तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी हैरान हूँ मैं!” इस आवाज़ से पहचान तो स्कूल के दिनों में ही हो गई थी जब हर सुबह प्रार्थना के समय स्कूल के स्टेज पर खड़े होकर “हमको मन की शक्ति देना” या फिर “इतनी शक्ति हमें देना दाता” गाया करती थी। यह शायद इस आवाज़ का ही जादू था कि कम उम्र में ही मेरे मन मे परमपिता परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास पैदा हुआ और मुझे यह प्रार्थनाएँ कंठस्थ हो गईं।

उम्र बढ़ने के साथ उनके गाए फ़िल्मी भजन “अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम”, “सांचा नाम तेरा, तू श्याम मेरा”, “कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार, मोहे चाकर समझ निहार” और पंडित भीमसेन जोशी के साथ उनकी प्राइवेट एलबम ‘राम श्याम गुणगान’ का भजन “श्याम घन घनश्याम बरसो, बहुत प्यासी हूँ”, सुनकर खुद को प्रभु के बहुत क़रीब महसूस करने लगती हूँ। इतनी ह्रदयस्पर्शी आवाज़ कि लगता जैसे वे भक्त और भगवान के बीच की कड़ी हैं और ईश्वर सचमुच सुन रहे होंगे उन्हें!

स्कूल के दिनों में ही उनका देशभक्ति गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी” सुना और गाया भी। कहते हैं जब पहला बार उन्होंने कवि प्रदीप का लिखा यह गीत लालक़िले से गाया तो पंडित नेहरु रो पड़े थे। उस समय देश कठिन दौर से गुज़र रहा था। चीन के साथ युद्ध में हमारी बुरी तरह हार हुई थी और हमने भारी संख्या में अपने सैनिकों को खोया था। ऐसे समय पर इस गीत को सुनकर आँखों में आँसू आ जाना स्वाभाविक था। पर यह इस मर्मस्पर्शी गीत की पंक्तियों और दिल तक पहुँचती आवाज़ का जादू है जो वर्षों बाद भी जब यह गीत बजता है तो आँखें नम होने लगती हैं और उन शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए शीश झुक जाता है।

जहाँ एक तरफ़ उनके गाए प्रणय गीत “लग जा गले कि फिर ये हँसी रात हो न हो”, “आप की नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल हमें”, तेरे बिना जिया जाए ना”, “बाँहों में चले आओ”, “ये कहाँ आ गए हम यूँ ही साथ साथ चलते” “दिल तो है दिल, दिल का ऐतबार क्या कीजे” और ऐसे ही अनगिनत गीतों ने दिल को ऐसा छुआ कि वो प्यार करने को मचल उठा। वहीं दूसरी तरफ़ विरह गीतों में उनकी दर्द भरी आवाज़ ने दिल टूटने का दर्द महसूस करवाया। “मोहे भूल गए साँवरिया”, “दो दिल टूटे दो दिल हारे”, “पिया बिना पिया बिना बांसियाँ बाजे ना”, तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं”, “याद आ रही है”, यारा सिली सिली बिरहा की रात का जलना”, जैसे नग़मों को सुनकर आँखों से आँसू बहने लगना इस बात की निशानी था कि उनकी आवाज़ सीधा दिल में उतरती थी।

१३ वर्ष की आयु से शुरु कर ७८ वर्षों तक ३० हज़ार से अधिक गानों को अपनी कर्णप्रिय स्वरों से सजाने वाली ‘स्वर कोकिला’ भारत रत्न लता मंगेशकर की आवाज़ पूरी दुनिया में सिर्फ उनकी ही नहीं पूरे भारतीय संगीत की पहचान बन चुकी है। नाम बदलेगा, चेहरा भी बदल जाएगा पर ये नाम कभी गुम नहीं होगा..हमेशा अमर रहेगा सब भारतीयों के दिलों में, मेरे जैसे उन तमाम संगीत प्रेमियों के दिलों में, जिन्होंने लता जी की आवाज़ और उनके गीतों के साथ अपनी हर उम्र को जिया है, जीवन के हर रंग, हर पहलु को समझा है, महसूस किया है।

“इक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है।

जिंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है!”

 

©स्वीटी सिंघल, बैंगलोर, कर्नाटक                                                 

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