लेखक की कलम से
भागीदारी …
बराबर की भागीदारी
अब आई महिलाओं की बारी
केवल पोस्टरों में ही नज़र आती हैं
अब यह लयकारी
मेरी सहेली ने जो दलित समाज से है,
समाज में घुलकर रहने को
ब्याह किया उच्च समाज में
है प्रेम विवाह बताया उसने
अब मैं उच्च स्तर (समाज)
की हूँ
बताते थकती ना वो ।
जन्म से सामाजिक असली
पहचान
छुपाते-छुपाते साठ पार कर गई हैं वो ।
उसका अस्तित्व क्या है
समझ नहीं पाती मैं ।
कहाँ गया वो प्रेम
जब साठ की दहलीज़ पर
प्रेमी पति द्वारा प्रताड़ित आदिवासी नामांकन दाखिल
करवा लिया हंसकर उसने ।
श्याम वर्ण की, सुखदायक
पत्नी
घर में तो भागीदारी का हिस्सा ले नहीं पाई
समाज कहाँ उसे भागीदारी का हिस्सा बनाने का दिल लाएगा
मन मेरा समझ नहीं पाया इस भागीदारी का हिस्सा
कहाँ से आएगा?
©सावित्री चौधरी, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश