लेखक की कलम से

ऐसी होली खेलना चाहूँ …

ऐसी होली खेलना चाहूँ कान्हा तेरे संग

तन मन से तेरी हो जाऊँ

रसना तेरी गाऊँ।।

तन पर रंग तेरा चढ़ जाए।

कृष्ण मयी हो जाऊँ।।

रूह तेरी लौ में समा जाए।।

कान्हा तेरी प्रीत में रंग कर

झूम झूम कर नाम ध्यायूँ

ऐसा रंग लगा दो मोहन

तेरे रंग में ही रंग जाऊँ।।

जग बिसरे तन छूटे

तेरी ही बन जाऊँ।।

तेरे रंग में रंग जाऊँ।।

अंग अंग भीगे नाम खुमारी चढती जाए

कान्हा मिलन को तरसते नैना

प्रीत तेरे के रंग में ढूबी

भवसागर तर जाऊ।

आओ कान्हा इस बार तोहे संग

होली मनाऊँ।।

 

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा                        

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