लेखक की कलम से

तुमने कहा तो ….

 

 

तुमने कहा तो

हम धीरे से

तुम्हारी जिंदगी में

मुस्कुरा कर चले आए।

तुम्हारी बातों पर,

तुम्हारे वादों पर,

तुम्हारी कसमों पर,

तुम्हारी वफ़ाओं पर,

तुम्हारे इरादों पर,

तुम्हारे विचारों पर,

तुम्हारी मुहब्बत पर,

करके भरोसा चले आए।

तुमने कहा तो चले आए।

 

एक प्यारी सी दुनिया

हमारी भी थी।

माँ बाप का दुलार था।

भाई बहनों का प्यार था।

सखियों का साथ था।

बाबुल के आंगन में

मन आजाद था।

अपनों का अपनेपन से

सराबोर संसार था।

सुनहरी सपनों का सैलाब था।

कैरियर का सौपान था।

तुमने कहा तो

मायके की वो गलियां

जहां हमारा बचपन बसता था

छोड़ आए।

मात्र तुम्हारे भरोसे पर

अपना सब कुछ छोड़ आए।

सपनों की किश्ती में

तुम्हारे साहिल पर तैर आए।

तुमने कहा तो

तुम्हारी जिंदगी में चले आए।

 

तुम्हें पाने के लिए

क्या कुछ छोड़ आए

ग़म मनाएंगे नहीं।

इस त्याग का एहसान

तुम पर जताएंगे नहीं।

कम भी मिला तो शिकायत

कभी करेंगे नहीं।

अपना लेंगे तुम्हारी दुनिया को

आनाकानी करेंगे नहीं।

बस इतना सा याद रखना

कि हमारा भी एक अस्तित्व है।

एक व्यक्तित्व है।

आत्मस्वाभिमान है।

अपनी एक पहचान है।

सपनों का एक आसमान है।

बस इतना सा ख्याल रखना,

जीवन संगिनी का मान रखना।

सुख दुख में

साथ बनाये रखना।

बस इतनी सी गुज़ारिश है।

इतनी सी तसमन्ना है।

इस छोटी सी आशा को लिए

हम तुम्हारी जिंदगी में चले आए।

तुमने कहा तो हम चले आए।

 

©ओम सुयन, अहमदाबाद, गुजरात

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