लेखक की कलम से
अगहनी सुप्रभात
नयनों के नीर दिखे नहीं उनको दिल सूखे हों जिनके
बह गई धरती बहा आसमां बहे न स्वाभिमान
कौन बचाये कौन सुखाये नीर यहां रे बंदे
सजल ग़ज़ल है इनसे शब्दों का अभिमान!
©लता प्रासर, पटना, बिहार
नयनों के नीर दिखे नहीं उनको दिल सूखे हों जिनके
बह गई धरती बहा आसमां बहे न स्वाभिमान
कौन बचाये कौन सुखाये नीर यहां रे बंदे
सजल ग़ज़ल है इनसे शब्दों का अभिमान!
©लता प्रासर, पटना, बिहार