लेखक की कलम से

ढूंढती हूं किनारा…

ढूंढती हूँ किनारा,
भंवर में फंसी हूँ,
दे दो इक इशारा,
तेरी राह देखती हूँ,
थी खुशियों की तमन्ना,
पर उलझन में पड़ी हूँ,
न ठौड़ है अब तक,
न तो इस पार,
न उस पार जा रही हूँ,
थी मंजिल बहुत पास,
वह दूर हो चली है,
क्यों रूठ गया तू मुझसे,
मैं तेरी हमसफर हूंँ,
पास होकर मेरे इतने,
क्यों दूर तुम चले गए,
मेरी बेपनाह मोहब्बत,
तेरे लिए ही जिंदा है,
कहांँ खो गए तुम,
न अब तक खबर है,
तुम साहिल हो मेरा,
दरिया बन तुझे ढूंढती हूँ …..।।

©पूनम सिंह, गुरुग्राम, हरियाणा

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