लेखक की कलम से

कोरोना की नकरात्मकता से जीवन की सकारात्मकता तक का सफर

वैसे तो पूरी दुनिया कोरोना के आतंक से परेशान है। चारों तरफ सिर्फ उदासी और मायूसी सी है। जैसे के नकारात्मकता ने सभी को घेर लिया हो और पूरा वातावरण किसी तूफान के सन्नाटे में है।

ये लेख दरअसल जुड़ा तो इस भयानक वायरस से ही है लेकिन इस पूरे नेगेटिव माहौल में एक चीज मुझे लगी जो पॉजिटिव हुई। वो है ज़िंदगी का एहसास, अपने ज़िंदा होने का एहसास। शायद ज़िन्दगी इतना तेज़ी से आगे बढ़ रही थी। इतनी आपाधापी में हम थे के हमने सोचना छोड़ ही दिया था कि हमारी ज़िंदगी का भी कुछ मकसद है। कोई विशेष कारण है सिर्फ चंद रुपए कमाना तो नहीं है। ना ही किसी बड़ी गाड़ी में घूमना, विदेश यात्रा करना या कोई बड़ा प्रोमोशन मिलना सिर्फ ज़िंदगी है।

जीवन तो इन सबसे परे है। जब दुनिया थमी, कुछ पल के लिए जैसे समय, शहर, देश, विदेश सब ठहर से गए। तब सोचने का समय मिला के इन सब प्रतिस्पर्धाओं ने हमें कितना खोखला बना दिया है हमारा जीवन कितना नीरस करदिया है।

अब जाना के जीवन इन सबसे परे है शांति में, ठहराव में, अपनों के साथ। इस कर्फ्यू काल ने सीखाया के जीवन तो वह है जो अपनों के साथ बिताया बाकी तो सिर्फ सांसें लेने की प्रक्रिया है। एक पल को मान लो के एहसास हुआ के इस मुश्किल में इंसान सिर्फ अपने अपनों को इर्द-गिर्द रहना चाहेगा। अकेले किसी करोड़ो के फ्लैट में या बंगले में मायूस उदास रहने के बजाय अपने परिवार के साथ वन बीएचके में भी वक़्त बिताया तो लगेगा के अब ज़िंदगी जी है। ये वक़्त मायूस या निराश होने का नहीं बल्कि अपने अंदर की आत्मिक ऊर्जा और प्रेम को पोषित करने का है। वो प्रेम जो कई वर्षों से आधुनिकता और माया मोह के चक्कर में कहीं खो सा गया था।

परिवार के साथ कुछ ऐसा समय बिताएं जिसमें आपकी आत्मा को आनंद मिले। सच्ची ख़ुशी है मां के हाथ का खाना, बहन के हाथों से बालों में तेल लगवाना, पापा की डांट, भाई से रिमोट के पीछे झगड़ा करना। असल में सुख तो अपनों के साथ ही है बाज़ार में नहीं। कुछ समय पैसे, जॉब, इकोनॉमी, व्यस्तता आदि का रोना छोड़ के कुछ अनमोल पल जिएं। इन सब का रोना तो हमेशा चलता रहेगा। आप इन सबके बारे में सोच के दु:खी रहेंगे तब भी मौजूदा स्तिथि यही है और अपनों के साथ घर में समय बीता कर कुछ खुशनुमा पल भी बिताएंगे तो भी स्थिति यही है। कम से कम खुश रह के, मन शांत कर के इस समय को बिताने की कोशिश करें।

याद करें आपने कई बार ये एहसास किया होगा जब आपके चेहरे को, आपको खुश होते देख आपके माता-पिता की आंखों की खुशी दोगुनी हो गई। इतने दिनों बाद जब आप बिना समय देखें उनके साथ वक़्त बिता रहे हैं तो उन्हें कितना अच्छा लग रहा होगा। बस इन लम्हों को जीएं बाकी तो ज़िन्दगी का रोना स्वतः चलता रहता है।

इस समय को सदुपयोग कर के अपनी शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाएं। आज क्यों न कुछ अच्छा बना के मां को अपने हाथों से खिलाएं। पापा के साथ बैठकर उनसे जीवन के कुछ सबक लें। थोड़ा भाई बहन से रूठे, थोड़ा उनको मनाए। क्योंकि वो कहते हैं न के शायद किसी दूसरे के लिए आप एक व्यक्ति हैं लेकिन आपके परिवार की तो पूरी दुनिया ही आप हो।

©परिधि रघुवंशी, मुंबई

परिचय-  इंजीनियर, नागपुर अपडेट्स डिजिटल चैनल के लिए मुंबई में न्यूज एडिटर।

कहानीकार,  लेखन, चर्चित रचनाएं, हिन्दी में चकला-बेलन, आशिमा की नियति या पतझड़ का मंडप

इंग्लिश-  Not Necessarily A Super Woman, Yes I’am A make – up artist.

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