लेखक की कलम से

रिश्ता …

जिन रिश्तों को आपकी मौजूदगी से परहेज होने लगे,

वहाँ से मुस्कुरा कर चले जाना ही बेहतर समझना

जहा कहने सुनने का एहसास नहीं वहा आंखे नम मत करना

कद्र मुस्कुराहट की नही तो आस के अश्रु जाया ना करना

झूठ की कश्ती में स्वार पल भर की खुशी दिखावे की प्रीत ना करना

झूठ से शुरू झूठ पर खत्म होते रिश्तों पर वक्त की परीक्षा पास ना करना

बुलेखा यहीं है जनाब एक धागे में गाठ आ जाए तो समझता भी बायमान का जवाब दिया करता ऐसा रंग लाया है सही और ग़लत से समय और समझ से कम करना …

© हर्षिता दावर, नई दिल्ली               

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