लेखक की कलम से

हिंदी दिवस …

स्वागत स्वागत पूस में उत्तराषाढ़ नक्षत्र का
विश्व हिंदी दिवस पर शबनमी सुप्रभात

उलझ कर वाणी आ लगा उसे बान सा
टूट गया वह हुआ धराशाई अभिमान सा
प्रचंड तेज लिए फिरा समझ खुद को ध्रुवतारा
चाहता था वह फैल जाए सब पर आसमान सा

लगे टूटने पर उसके जाने कैसी हवा चली
कानाफूसियों में घूम रही बात गली-गली
बात कैसी भी हो उसे क्यों लगता अपमान सा
वह मानता खुद को खुदा पर उसकी एक न चली!

@लता प्रासर

Back to top button