लेखक की कलम से

बहर…

मुहब्बत के नगमें सुनाती रही मैं

तेरे इश्क़  में मुस्कुराती रही मैं

 

कहीं मुस्कुराहट ये कम हो न जाये

खुशी का कोई गीत गाती रही मैं

 

बहारों से कह दो हमें भूल जायें

सदा दर्द को याद आती रही मैं

 

कभी जिंदगी का सफर था सुहाना

कभी आस दिल में जगाती रही मैं

 

जली दीप बनकर तो हैरां थी दुनियां

सराफत को दिल में बसाती रही मैं

 

कहीं कोई अपना सा लगता है मुझको

उसी के लिए गीत गाती रही मैं

 

मेरी जिंदगी की कहानी लिखोगे

यही कबसे तुमको बताती रही मैं

-क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज

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