लेखक की कलम से
आषाढ़ और आद्रा लगाते बैठा है बदला …
सिढ़ियां केवल चढ़ाती ही नहीं उतारती भी हैं एक वक्त के बाद
मुश्किल है सही सीढ़ी का चुनाव शायद मिले उथल-पुथल के बाद
कहां तय होता जिंदगी की मंजिल लड़खड़ाते हैं लोग जिंदगी भर
ज़रा सम्हलते ही नये दृश्य का आगाज होता इन लम्हों के बाद!
©लता प्रासर, पटना, बिहार