लेखक की कलम से

पुरुषोत्तम धाम …

 

चलो पुरुषोत्तम धाम चले

किए जो अच्छे काम चले

जहां बैठे सबके नाथ हैं

बैकुंठ का यह धाम है

चरणों में उनके सब अर्पण करने चले

हम तो जगन्नाथ के पास चले।

अरुण स्तंभ पर माथा टेका

बाइस सीढ़ी देकर पहुंचे

देखो कितना प्रफुल्लित मन है

उनके आश्रय में हम हैं

कितने दिनों की आशा थी

हां मन में एक अभिलाषा थी

हर सुख दुख उनसे बांटेंगे

पुरी धाम में घूमेंगे

जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की छवि नैनों से निहारेंगे

शायद इससे विचलित मन को शांति मिले

मंदिर का ध्वज लहराते देख कर

लक्ष्मी जी के भी दर्शन होगें

महाप्रभु के तुलसी पाकर स्वयं को धन्य मानेंगे

ढंक तोरानी कहते जिसको

अमृत सम हम पी लेंगे

पाकर देवों का प्रसाद हम तो जैसे स्वर्ग पहुंचेंगे

चलो जगन्नाथ धाम घूमेंगे।

समुद्र तट जाकर जैसे महोदधि हम पहुंचेंगे

छूकर जल को जैसे सारे पाप प्रभु हर लेंगे

जहां देखो प्रभु की महिमा

कण- कण में है उनका वास

बच्चे, बूढ़े या हो जवान

सबको प्रभु के दर्शन की आस

मन पावन हो जाए

जो पहुंचे पुरुषोत्तम धाम

चलो पुरुषोत्तम धाम चले।।

 

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा                                  

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