निष्काम भक्त के लिए मोक्ष भी है व्यर्थ …
‘ निष्काम भक्त केवल हरि के चरणों की सेवा ही करना चाहता है। उसे भक्ति के सामने मुक्ति भी प्रिय नहीं। भक्तों को ना तो अमृत्व चाहिए, ना ऐश्वर्य, न हरि का लोक, न हरि के अंग संग लगना- वह तो निष्काम भक्ति में ही प्रसन्न रहता है।’ उपर्युक्त उदगार श्रीगोपाल जी धाम, आगरा में कथा वाचक डॉ. दीपिका उपाध्याय ने व्यक्त किए। आज श्रीमद् भागवत कथा का दूसरा दिन था। देवहूति और कर्दम ऋषि के विवाह का प्रसंग सुनाते हुए कथा वाचिका ने कहा कि देवहूति भगवान कपिल मुनि के अवतरण का माध्यम इसलिए बनीं क्योंकि उनके माता-पिता ने तपोधनी वर को महत्व दिया। यदि स्वायंभुव मनु राजा होने के कारण धन को ही जामाता होने की अनिवार्यता मानते तो आज पुराणों में देवहूति की प्रशंसा ना होती। आज माता पिता पुत्री के लिए वर खोजते समय मात्र आर्थिक स्थिति देखते हैं। संस्कारों की ओर ध्यान न देने के कारण ही आज समाज की दुर्गति हो रही है।
कपिल मुनि माता देवहूति को उपदेश देते समय सिद्धियों के चक्कर में न फंसने की बात कहते हैं, जो चमत्कारी बाबाओं के झांसे में आने वाली जनता के लिए संदेश है। वस्तुतः चमत्कार दिखाने वाले गुरु ना तो अपना ही कल्याण कर पाते हैं और ना ही अपने शिष्यों का। भक्त को चाहिए कि वह अपने चित्त को भगवान के चरणों में लगाए। कीर्तन और भगवान का लीला वर्णन एवं कथाएं सुनकर अपना मन चरणों में स्थित करें। कलियुग में यही भक्ति योग भवसागर से पार लगाने की क्षमता रखता है।
भक्त ध्रुव का प्रसंग सुनाते हुए डॉ. दीपिका उपाध्याय ने कहा कि ध्रुव का वन जाना केवल घटनाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया नहीं थी बल्कि यह युग युगांतर तक मनुष्य को शिक्षा देने वाली कथा है। हम किसी भी अपमान अथवा मनोवांछित फल प्राप्त न होने के कारण या तो कुंठित हो जाते हैं या क्रोध में आ जाते हैं। ध्रुव की तपस्या की यह कथा बताती है कि हरि शरण में जाने से छोटी सी इच्छा भी कितने बड़े फल का कारण बन जाती है। अतः हमें हरिभक्ति का ही मार्ग पकड़ना चाहिए।
राजा पृथु का सुंदर प्रसंग बताता है कि राजा के कर्तव्य क्या है? रक्षक की चुनौतियों की झलक भी दिखाता है यह प्रसंग। पृथ्वी औषधियों, वनस्पतियों, रत्नों आदि की रक्षक है इसलिए जब जब कोई क्रूर, दुराचारी और अधर्मी शासक सत्ता संभालता है तो पृथ्वी अपने उपहारों को अपने भीतर ही छुपा लेती है। राजा पृथु पृथ्वी को आश्वस्त कर उसके समस्त रत्नों, औषधियों और गुणों आदि का दोहन करते हैं और धरती पर धर्म की स्थापना करते हैं।
इस ऑनलाइन कथा का प्रसारण 2 जुलाई तक प्रतिदिन शाम 4:00 से 6:00 बजे तक होगा।
©डॉ. दीपिका उपाध्याय, आगरा