लेखक की कलम से

एक गधा चाहिए…..

व्यंग्य

समय बदल गया है ।अब बाप से ज़्यादा लोगों को गधे की ज़रूरत है ।गधा जिसे वक़्त पर बाप बनाया जा सके ।विज्ञान ने कितनी भी तरक़्क़ी कर ली ।परंतु बाप चुनने का अधिकार आज भी बच्चे को नहीं है ।भविष्य में भी ऐसी सुविधा मिलने वाली नहीं है ।अगर मिली तो शायद ही दो -तीन प्रतिशत लोग हों जो अपना ओरिजनल बाप रखना चाहें ।वह बाप ही किस काम का जो हर ज़रूरत पूरी न कर सके ।आजकल लोगों की यही धारणा है ।कल रास्ते में बाँके जी मिल गए ।बातों -बातों में मैंने उन्हें अपनी दुविधा बताई ।तपाक से बोले -“किसी गधे को बाप बनाओ ।”
मैंने कहा -“ मेरे बाप हैं।”
उन्होंने कहा -“तो मैंने कब कहा उन्हें गंगा में धक्का दे दो ।हैं तो रखो घर में ।”
मैंने घबरा कर कहा -“ दूसरे बाप ?”
उन्होंने कहा -“सदा के लिए नहीं ।बस काम निकलने तक ।लोग तो अपने जीवन काल में सौ -सौ बनाने से गुरेज़ नहीं करते ।तुम हो कि दूसरा बनाने से ही डरते हो ।” उन्होंने मुझ पर लानत भेजी और मैं शर्मिंदा ।
बाँके जी की गुफ़्तगू सुन रहे बिहारी लाल चुपचाप पास ही खड़े थे ।बाँके जी के जाते ही उन्होंने राज़ खोला -“इन बाँके जी के कई बापों को मैं जानता हूँ ।इन्होंने मेरे सामने एक व्यापारी को बाप बनाया ।कुछ दिन बाद इन्हें नेता मिल गए ।पहला बाप छोड़ इन्होंने उस नेता को बाप बनाया ।उसके बाद इन्हें एक रईस कारोबारी मिले ।उसके पैसे को देखकर ये उन्हें बाप बनाने को आतुर हो उठे ।पिछले साल इन्होंने चार बाप बदले ।ये इस काम में एक्सपर्ट हैं ।इनके नक़्श -ए -कदमों पर चलोगे तो जल्दी ऊँचाइयों पर पहुँच जाओगे ।”
मैंने न में सिर हिलाया और कहा -“नहीं !मुझे नहीं चाहिए ऐसी ऊँचाइयाँ ।मैं ज़मीन पर ही ठीक हूँ ।”
बिहारी जी मुझे समझाने की मुद्रा में एक अन्य उदाहरण देते हुए बोले -“मेरी एक महिला मित्र हैं ।उन्हें प्रसिद्धि पाने की बहुत उत्तेजना है ।वे सदा गधे की तलाश में रहती हैं ।किसी भी कार्यक्रम में जा कर वह कभी आराम से कुर्सी पर नहीं बैठती ।चिड़िया -सी फुदक-फुदक कर सबके पास जाती है और गले मिलती है ।वह गधों के लिए अलग -अलग चारा अपने पर्स में रखती है ।उसके पास चील -सी आँखें हैं ।जो जान लेती हैं कि किस को कब ,कितनी देर के लिए बाप बनाना है ।कुछ गधे उसकी चिकनी -चुपड़ी बातों से ,कुछ उसके गले मिलने से पूँछ उठा कर उसके पीछे दौड़ने लगते हैं ।कोई गधा उसे फ़िल्म में अभिनेत्री बनाता है ,कोई नौकरी दिलाता है ,कोई पुरस्कार देता है ,तो कोई सम्मान दिलाता है ।तुम समझा करो ।तुम तो बिलकुल लल्लू हो ।”
उन्होंने मुझ पर लानत भेजी और मैं शर्मिंदा ।
मुझे शर्मिंदा देख बिहारी जी ने मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए एक और उदाहरण देना शुरू किया -“एक महाकवि हैं।वे अब अध्यक्ष के रूप में शहर में प्रसिद्ध होना चाहते हैं।उन्हें ऐसा गधा चाहिए जो उन्हें अध्यक्ष बना सके ।उन्होंने गधे से ही साँठ -गाँठ कर ली है ।गधे को अध्यक्ष बना कर साथ की कुर्सी पर स्वयं अध्यक्ष बन सज गए ।गधे को कानों-कान खबर नहीं हुई कि उन्होंने उसे बाप बनाया है ।यह भी हो सकता है कि गधा खुद उन्हें बाप बनाने के चक्कर में हो ।”
मैंने पूछा -“क्या संसार में सभी गधे हैं?”
उन्होंने किसी साधु की तरह ज्ञान दिया -“कभी न कभी सबको गधा बनना ही पड़ता है ।कभी तुम जानते हो कि तुम गधे बने हो ।कभी तुम नहीं जानते कि तुम गधे बने हो ।काइयों को अपने जीवन काल में ज्ञात हो जाता है कि किसने,कब उसे गधा बनाया और कई बेचारे अज्ञान में ही पृथ्वी छोड़ जाते हैं ।”
उन्होंने मुझसे प्रश्न किया -“क्या कभी तुम गधे बने हो ?”
मैं किंकर्त्त्व्यविमूढ़-सी उन्हें देखने लगी ।यानि नहीं पता ।उन्होंने मुझ पर लानत भेजी और मैं शर्मिंदा ।
शर्म ही शर्म में मैंने अपना भूतकाल खंगाला ।मुझे याद आया कि एक सज्जन को उर्दू का ज़रा भी ज्ञान नहीं था ।मगर वे एक अंग्रेज़ी की किताब का उर्दू में अनुवाद कर रहे थे ।कर नहीं रहे थे बल्कि उन्होंने मुझे मक्खन लगा कर वह किताब मुझे अनुवाद के लिए दी ।मैंने काम शुरू भी कर दिया था कि मेरे गुरु जी ने मेरा मार्गदर्शन कर मुझे गधा बनने से बचा लिया ।वे मेरे ही पैसे से किताब छपवाना भी चाहते थे ।अब भी यदा-कदा वे प्रयत्न करते रहते हैं।पर मैं सतर्क हो गयी हूँ।
मेरी एक स्कूल समय की मित्र थी ।मैं एम .ए करने लगी और वह बी.एड ।कुछ समय सम्पर्क रहा ।मेरे भाई की शादी में भी वह आई ।उसके पिता सरकारी नौकरी में थे और वे लोग सरकारी मकान में रहते थे ।उस समय मोबाइल थे नहीं ।उससे सम्पर्क टूट गया ।उसके पिता रिटायर होने वाले थे ।पता नहीं वे कहाँ रहने लगे ।उसकी शादी हो गयी होगी ।मेरी भी हो गयी ।मैंने शादी के बाद पति को कई बार उसे ढूँढने को कहा ।पर पति कहते -“किसी लड़की को ढूँढने जाऊँगा तो पिट जाऊँगा ।”मुझे उसका घर पता नहीं था ।पर मेरा मायके का घर तो वही है ।उसे पता भी था ।और सभी सहेलियाँ सम्पर्क में हैं ।उसका ध्यान कई बार आता ।फ़ेसबुक पर भी उसे ढूँढने की कोशिश की पर सब व्यर्थ ।कुछ दिन पहले लगभग 30 साल बाद उसने मेरे मायके में सम्पर्क किया और मेरा नम्बर माँगा ।मेरी भाभी का फ़ोन आया तो उन्होंने उसके बारे में बताया ।मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ।जिसे कहते हैं मन प्रसन्न होना ।ठीक वैसा ही मुझे महसूस हुआ ।
अगली सुबह वह मेरे घर आई ।मैंने बहुत गर्मजोशी से उसका स्वागत किया ।उसने मेरी तारीफ़ करनी शुरू की ।ठीक वैसे ही जैसे लोमड़ी ने कौए की रोटी छीनने के लिए की थी ।
“अख़बारों में तुम्हारा नाम पढ़ा ।तुम तो बहुत बड़ी कवि बन गई हो। “
मैंने कहा -“नहीं !ऐसी कोई बात नहीं ।बस साहित्य में रुचि है ।असल में जो बड़े कवि होते हैं ,वे छोटे होते हैं और जो छोटे होते हैं वे बड़े होते हैं ।”
उसने कहा -“मुझे बड़े -छोटे का पता नहीं ।बस !मुझे भी अपनी किताब छपवानी है ।मेरी किताब छपवा कर दो ।”
इतने सालों से जो उसके लिए मन में प्यार था ,मिलने का उत्साह था ।वह सब मिट्टी में मिल गया ।उसने ज़ोर देकर कहा -“मुझे तुम्हारी मदद चाहिए ।”
मुझे सुनाई दिया -“मुझे एक गधा चाहिए ।”
मेरा मन ज़ोर -ज़ोर से ढ़ैचू -ढ़ैचू करने को होने लगा ।

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़

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