वीर रस …
कठिनतम पथ हैं,
न कोई भी संग हैं,
गहनतम अंधकार हैं,
न कही प्रकाश हैं,
फिर भी न तुम्हे रुकना हैं,
बस बढ़ते ही जाना है,
चीर हर अंधकार अब,
नव आदित्य बन जाना है,
जो दे प्रकाश हर तमस को,
जगाए जो अंतस को,
अधिकारों का होता हनन हैं,
न आशा की किरण हैं,
तो क्या रूक जाओगे तुम?
लक्ष्य भूल जाओगे तुम?
तुम अटल चट्टान हो,
हिमालय से महान हो,
कोई तुम्हे रोक सकता नही,
कोई भी तिनका नही,
ले लो दहाड़ अब जरा,
डराओ मुश्किलों को जरा,
टूट जाओ आज दुःख पर,
बढ़ाओ कदम जरा शूलों पर,
धैर्य का जरा साथ लो,
संकल्प अपने हाथ लो,
बढ़ चलो फिर बढ़ चलो,
चीर तिमिर बस बढ़ चलो,
सशक्त तुम से नही,
वेग रूक सकता नही,
न इधर न उधर चलो,
बस लक्ष्य पर बढ़ते चलो,
रोक कौन पायेगा?
संकल्प जब संग जाएगा,
लक्ष्य पाकर ही अब लेना है दम,
खुद बनो मांझी,खुद पतवार तुम,
देखो फिर कुछ नव रच जाएगा,
हर कदम बस इतिहास बनाएगा,
तो बढे चलो,बस बढे चलो,
तिलक वीरता का लगा,
बस वीरता से चलते चलो,
बस सदा बढ़ते चलो।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी