लेखक की कलम से

प्रकृति से सीखें ….

 

तरुवर से सीखें हम देना

नदियों सम है बहना

रवि जैसे उजास बांटना

चंदा जैसे चमकना ।।

                                 

बरखा से जल भर लाते

छोटे ताल तलैय्या

फिर सबकी प्यास बुझाते

क्या मानव क्या गैय्या ।

प्रकृति कभी न संचय करती , हाथ बढाकर ले ना ।।१

तरुवर से हम ……

 

फल फूलों से वृक्ष लदे हैं

अपना फल न खाए

भार से अपने इठलाकर

हमको फल दे जाए

दाता सम पेडों से आ , सीखें हम भी देना ।।२

तरुवर से सीखें हम ….

 

देने में मिलता है सुख

सिखलाता हर धर्म

तो फिर मूढमति क्यूं

भूल जाए हर कर्म ।

पर्यावरण को आ संवारें , और सीख जाएं संग जीना ।।३

तरुवर से सीखें हम ……

 

लॉकडाउन में हमने सीखा

प्रकृति है हम जैसा

हम बैठे थे चारदीवारी

वो सहलाए अपनों सा ।।

जड़ चेतन सब एक है , मिल बैठे घर अंगना ।।४

तरुवर से सीखें हम देना

नदियों सम है बहना …

 नदियों सम है बहना….

©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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