लेखक की कलम से

गहराने दो….

गहराने दो ये रात कि आज तुम आये हो।

शायद मेरी इस रात के अंधेरे में वो गुजर गयी सुबह लाये हो,,

तल्खी इन रिश्तों में बेवजह की अच्छी नहीं होती,

अच्छा किया जो हर बंदिश, हर जंजीर को पीछे छोड़ आये हो।

चलो आज इस रात को इसके नूर से मिलाते हैं,

मेरे तो हर ख्वाब को तुम मुझ तक मोड़ लाये हो।

मेरे दिल में बसे लफ़्ज़ों का तुम वो अधूरापन हो,,

जितना भी पूरा कर लूं एक और अधूरापन अपने साथ लाये हो,

तुम्हें अपने ख्वाब से भी खूबसूरत कहूं तो शायद कुछ कमी रह जायेगी,,

बस इतना समझ लो जितनी दफा आये हो एक जिंदगी साथ लाये हो….

@सुधांशु द्विवेदी, बांदा, उत्तर प्रदेश

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