बचपन के दिन …
कितने अच्छे दिन थे यारों,
दिन वो कितने अच्छे थे,
जब यारों संग सारा दिन हम,
कन्चें खेला करते थे,
कभी चलाते टायर थे,
और पिट्ठू खेला करते थे,
उछल उछल के रस्सी भी,
यारों हम कूदा करते थे,
गुल्ली-डंडा खेल था प्यारा,
आँख मिचौली करते थे,
पापा की साइकिल के आगे,
बैठने के लिये लड़ते थे,
कितने अच्छे दिन थे यारों,
दिन वो कितने अच्छे थे,
जब यारों संग सारा दिन हम,
कन्चें खेला करते थे,
गर्मी की छुट्टी में हम तो,
मौज मस्तियाँ करते थे,
कभी घूमने जाते थे,
कभी नानी के घर रह्ते थे,
क्रिकेट के लिये सुबह सुबह ही,
हम पिच रोका करते थे,
कितने अच्छे दिन थे यारों,
दिन वो कितने अच्छे थे,
जब यारों संग सारा दिन हम,
कन्चें खेला करते थे,
संगल बड़ी बनाकर सब,
हर एक को पकड़ा करते थे,
एक दूसरे को छूने को,
दौड़ा भागा करते थे,
लट्टू को भी घुमा घुमा कर,
हम मौज मनाया करते थे,
कितने अच्छे दिन थे यारों,
दिन वो कितने अच्छे थे,
जब यारों संग सारा दिन हम,
कन्चें खेला करते थे,
होती थी जब बारिश यारों,
गली में भींगा करते थे,
कागज की फिर नाव बना कर,
शर्त लगाया करते थे,
राजा बोले कौन वज़ीर,
हम चोर सिपाही करते थे,
कितने अच्छे दिन थे यारों,
दिन वो कितने अच्छे थे,
जब यारों संग सारा दिन हम,
कन्चें खेला करते थे,
जब यारों संग सारा दिन हम,
कन्चें खेला करते थे,
कन्चें खेला करते थे”….
©तेजिन्द्र दत्त फुलारा, राजस्थान