धर्म

यात्रा वृतांत, यहां- वहां घूमते रहते हो; कभी दतिया आओ हम तुम्हें मां पीतांबरा के दर्शन के लिए ले चलेंगे, रेखा दीदी ने आत्मीयता पूर्ण ढंग से कहा ….

अक्षय नामदेव। 13 नवंबर की सुबह हमें अयोध्या की ओर रवाना होना है। यह जानकारी मैंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान के संयोजक गौरव अवस्थी को पूर्व से ही दे दी थी। सुबह हम जल्दी तैयार हो कर होटल के दूसरे तल पर स्थित हाल पर आ चुके थे जहां सुबह के नाश्ते एवं चाय का प्रबंध था। यह विदाई की भी बेला थी। देश के अलग-अलग राज्यों से आए सभी आगंतुक अतिथि अपनी सुविधा अनुसार रवाना होने को थे। गौरव अवस्थी विदाई की इस बेला में सपरिवार वहां उपस्थित थे। उनके साथ आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान रजत जयंती समारोह आयोजन समिति के सदस्य भी वहां उपस्थित थे।

गौरव भैया आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त कर रहे थे। वे आत्मिक भाव से  कुछ हास परिहास भी करते जा रहे थे तो बीच-बीच में कुछ भावुकता का माहौल भी बन रहा था। एक दूसरे से मिलते जुलते सभी ग्रुप फोटोग्राफी भी कर रहे थे। एक दूसरे से नंबर आदान-प्रदान के अलावा एक दूसरे को अपने यहां आमंत्रण देने का सिलसिला भी चल रहा था। इस बीच मुझे जानकारी दी गई कि हमारे लिए अयोध्या जाने की गाड़ी का प्रबंध हो गया है। भैया गौरव अवस्थी के अभिन्न सहयोगी स्वतंत्र पांडे ने हमारे लिए इनोवा गाड़ी की व्यवस्था करवा दी थी ताकि हम सुगमता के साथ रायबरेली से अयोध्या और अयोध्या दर्शन तथा रात्रि विश्राम के बाद दूसरे दिन कानपुर जा सके। 14 नवंबर की शाम 5:30 बजे लगभग कानपुर से हमें कानपुर दुर्ग बेतवा एक्सप्रेस पकड़नी थी। हमारे पेंड्रा वापसी का आरक्षण इसी ट्रेन में था।

आत्मिक भाव से मिली भावभीनी विदाई के बाद हम सुबह 11:00 बजे होटल प्लीजेंट व्यू से अयोध्या के लिए रवाना हो गए। इस बार हमारी गाड़ी के ड्राइवर विनय यादव थे जो रायबरेली के पास के ही गांव के थे। तिवारी ड्राइवर विनय यादव से बातचीत करते जा रहे थे विनय रास्ते में पड़ने वाले गांव एवं शहरों तथा वहां की स्थानीय जानकारियां देते जा रहे थे।

रायबरेली तथा अमेठी के जिस इलाके से हम गुजर रहे थे वह भारत का विकसित क्षेत्र माना जाता है। माना भी क्यों न जाए। रायबरेली और अमेठी का भारत के राजनीतिक मानचित्र में अपना अलग महत्व रहा है। इन क्षेत्रों से कभी प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी, कभी राजीव गांधी, कभी सोनिया गांधी कभी, राहुल गांधी चुनाव लड़ते रहे हैं ऐसे में इनक्षेत्रों में राजनीतिक जागरूकता तथा विकास का दिखना स्वभाविक है। हमारी यात्रा अयोध्या की ओर बढ़ी चली जा रही थी। रास्ते में कुछ फोन भी आ रहे थे जो सोशल मीडिया के माध्यम से मैंकला बेटी के मालिनी अवस्थी द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किए जाने पर बधाई दे रहे थे।

इनमें से एक उल्लेखनीय फोन दतिया मध्य प्रदेश से रेखा दीदी का आया। रेखा दीदी ने अत्यंत आत्मीयता पूर्ण ढंग से मैंकला के अग्रिम भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हुए उलाहना और अधिकार सहित कहा कि यहां वहां घूमते रहते हो कभी दतिया आओ हम तुम्हें मां पीतांबरा के दर्शन के लिए ले चलेंगे। इस तरह रायबरेली से अयोध्या के रास्ते मुझे दतिया शकी बगलामुखी माता मां पीतांबरा देवी के दर्शन के लिए आमंत्रण मिल गया। रेखा दीदी के बारे में मैं आपको सिर्फ इतना परिचय दूं तो पर्याप्त होगा। वे पेंड्रा के कुंजी बिहारी तिवारी भैया की मंझली बहन है।

पेंड्रा के पुराने लोग कुंजी भैया के पिता परम श्रद्धेय स्वर्गीय रामेश्वर दयाल तिवारी के बारे में भली-भांति जानते हैं। वे बीटीआई पेंड्रा में दर्शनशास्त्र के व्याख्याता थे तथा मां पीतांबरा अनन्य भक्त थे वे। गृहस्थ में रहते हुए भी वह संत का सा जीवन व्यतीत करते थे। भूत भविष्य की बहुत सारी बातों का उन्हें अच्छा भला ज्ञान था। मुझे जहां तक याद है वे कविताओं की भी रचना करते थे। आध्यात्मिक प्रवृत्ति के कारण उनके जीवित रहते उनके इर्द-गिर्द बुद्धिजीवियों एवं ज्ञानपिपासु लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। नए कवियों एवं साहित्यकारों का वे खूब मार्गदर्शन करते थे।

पेंड्रा क्षेत्र में कवियों एवं साहित्यकारों की एक पीढ़ी को पोषित करने का श्रेय स्वर्गीय रामदयाल तिवारी को जाता है। उनकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति एवं ज्ञान के कारण पेंड्रा में अनेक लोगों ने उनसे गुरु दीक्षा ली थी। मां पीतांबरा के भक्त होने के कारण उनके अनेक अनुयायियों ने पेंड्रा में मां पीतांबरा की सेवा आराधना से जुड़े। पेंड्रा विद्यानगर में स्थापित दुर्गा मंदिर का निर्माण पेंड्रा के समाजसेवी सेठ स्वर्गीय किशनलाल अग्रवाल ने  रामेश्वर दयाल तिवारी की ही प्रेरणा से की थी। सेठ किशनलाल अग्रवाल अपने जीते उनका खूब आदर मान सम्मान करते थे।

मैं अपने बीटीआई कॉलोनी विद्यानगर के बचपन के दिनों को याद करूं तो रेखा दीदी और उनका पूरा परिवार तथा हमारा पूरा परिवार जैसे एक ही परिवार था। उनकी मां मेरी मां को छोटी बहन ही मानती रही। एक लंबा समय हमारा उनके साथ बीता है जिसकी बड़ी यादें हमारे साथ है। तीन बहनों एवं दो भाइयों में रेखा दीदी दूसरे नंबर पर थी। बड़ी दीदी हेमा की शादी हमारे बचपन के दिनों में ही हो गई थी जिसकी धुंधली यादें अभी भी मेरे मन में हैं।

हेमा दीदी के विदाई के समय उनके बीटीआई कॉलोनी स्थित आवास पर कवि सम्मेलन जैसा कार्यक्रम था जिसमें उनकी विदाई पर अनेक रचनाकारों ने विदाई की रचनाएं प्रस्तुत की थी। मेरी याद में किसी बेटी की विदाई में यह अद्भुत विदाई समारोह था।रेखा दीदी सहित तीनो बहनेहम भाइयों के लिए बहन जैसी ही रही है। रेखा दीदी के विवाह के अवसर पर पिताजी दतिया गए थे। पेंड्रा के सेठ किशनलाल अग्रवाल ने दतिया जाकर उनका कन्यादान किया था।

रेखा दीदी वर्तमान में मेडिटेशन तथा गाइडेड रिलैक्सेशन गाइडेड क्लीनिंग की क्लास संचालित करती है तथा इन गतिविधियों के कारण दतिया जिले सहित बुंदेलखंड में उनका बड़ा नाम है। उनका स्नेहिल आमंत्रण दतिया आने को मिले तो भला मेरी क्या बिसात जो इंकार कर सकूं?

मैं अतीत की यादों में ही खोया था कि अचानक पेंड्रा से मेरे मित्र जैसे बड़े भैया दुर्गा प्रसाद अग्रवाल का फोन आया और उन्होंने कहां – कैसे हो? कहकर पूछताछ की। मैंने बताया कि हम रायबरेली से अयोध्या जा रहे हैं। अभी रास्ते में है। उन्होंने कहा वहां अशर्फी भवन में रुकना। हमारे दुर्गा मंदिर पेंड्रा से संबद्ध आश्रम है। मैं भला इंकार क्यों करता? आखिर हमें अयोध्या में रात्रि विश्राम तो करना ही है।

वैसे भी धार्मिक स्थानों में मुझे आश्रम में आश्रय लेना ज्यादा अच्छा लगता है। वहां की धार्मिक गतिविधियों से सात्विकता और आध्यात्मिकता बनी रहती है।मैंने कहा आप वहां फोन करके बता दो कि हम आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि निश्चिंत होकर जाओ मैं व्यवस्था बनवा देता हूं।

बीच में एक जगह रुक कर हमने चाय पी। कुल्लड़ में मिली चाय का अपना अलग ही स्वाद होता है। लगभग 1:30 बजे हम अयोध्या के बाहरी हिस्से में प्रवेश कर चुके थे। रघुकुल शिरोमणि भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या प्रवेश के साथ ही आध्यात्मिकता का बोध होने लगता है। तीर्थ एवं पर्यटन की नगरी अयोध्या में नई नई कालोनियां नए नए भवनों के निर्माण के साथ आधुनिक मंदिरों एवं संतों के आश्रम का निर्माण तेजी से चल रहा है।

अयोध्या में अशर्फी भवन जाने के लिए हमने गूगल मैप की मदद ली और गूगल मैप की मदद से व्यस्ततम सड़क से होते हुए हम सीधे अशर्फी भवन पहुंचे। रामानुजचार्य संप्रदाय द्वारा संचालित अशर्फी भवन के गेट पर हमारी गाड़ी जाकर रुकी। गाड़ी से उतर कर मैं और तिवारी अशर्फी भवन के भीतर गए। वहां हमारी मुलाकात अशर्फी भवन के केयरटेकर महंत अनिरुद्ध महाराज से हुई। अनिरुद्ध को पूर्व में ही सूचित हो चुका था कि हम वहां पहुंचने वाले हैं। उन्होंने हमारे पहुंचते ही हमसे कहा पेंड्रा वाले हैं क्या? मैंने कहा जी।

उन्होंने वहां पढ़ने वाले एक विद्यार्थी को कमरों की चाबी देते हुए कहा ऊपर का कमरा खोल कर इन के रुकने की व्यवस्था करो फिर हमारी ओर देखते हुए कहा कि आप अपनी गाड़ी मुख्य गेट से अंदर कर ले और कमरे में सामान रखकर तुरंत आकर भोजन करिए। हमने गाड़ी परिसर के अंदर पार्क कर दी तथा विद्यार्थियों की मदद से गाड़ी से अपना सामान निकलवाया और कमरे में सामान रखा। रामानुजाचार्य संप्रदाय द्वारा संचालित अशर्फी भवन के विशाल परिसर में में भगवान लक्ष्मी नारायण का मंदिर है तथा मंदिर के दूसरी ओर दो मंजिला पावन बना हुआ है जहां सुविधा युक्त 50 से ज्यादा कमरे हैं। इसी परिसर में आवासीय संस्कृत विद्यालय संचालित होता है जहां विद्यार्थियों को संस्कृत की शिक्षा दी जाती है।

अशर्फी भवन में अन्य धार्मिक गतिविधियों के अलावा गौ सेवा चिकित्सा सेवा एवं अन्न सेवा के प्रकल्प भक्तों के सहयोग से चल रहे हैं। इसी के तहत अयोध्या विद्यापीठ के स्थापना एवं निर्माण का कार्य चल रहा है। परिसर के बीच में विशाल प्रांगण है। जहां विद्यालय की बस एवं अन्य वाहन खड़े हुए थे। विद्यार्थियों ने मुख्य द्वार खोलकर हमारी गाड़ी को अंदर आने दिया। विद्यार्थियों ने स्वयं आगे होकर हमारा समान गाड़ी से उतारा एवं कमरे में पहुंचा कर आए। कमरे मैं सामान पहुंचने के बाद हम मुंह हाथ धोकर वापस अशर्फी भवन के भोजन कक्ष में पहुंचे जहां विद्यार्थियों ने हमें आत्मिक भाव से भोजन कराया। भोजन करके हम अब अयोध्या के भ्रमण के लिए तैयार हो गए।

 

 क्रमशः

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