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श्यामलाल चतुर्वेदी के नाम पर बने शोधपीठ, विधायक शैलेष पांडे ने कहा- छत्तीसगढ़ी को जनभाषा बनाने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका …

बिलासपुर । छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पहले अध्यक्ष पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी की 97 वीं जयंती पर नगर विधायक शैलेष पांडे ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रति योगदान के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाने के लिए केंद्र की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग जब-जब उठेगी उनकी चर्चा होगी, क्योंकि अंतिम सांस तक उन्होंने इसके लिए प्रयास किया।

उन्होंने कहा कि चतुर्वेदी ने छत्तीसगढ़ी के साथ हिंदी में इतना कुछ किया, उन पर कई छात्र पीएचडी कर चुके हैं। भावी पीढ़ी उनके रचना संसार से प्रेरणा ले, इसके लिए उनके नाम से शोध पीठ का गठन होना चाहिए। शासन स्तर पर इसके लिए प्रयास किए जाएंगे। पं. चतुर्वेदी के योगदान, साहित्य सेवा पर व्याख्यानमाला का आयोजन, चतुर्वेदी के व्यक्तित्व, कृतित्व पर कार्य करने वालों को सम्मानित करने समिति का गठन किया जाना चाहिए।

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष व साहित्यकार डा. विनय पाठक ने कहा कि छत्तीसगढ़ी बोली को भाषा बनाने के लिए पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी ने अविस्मरणीय योगदान दिया। छत्तीसगढ़ी में लेखन की शुरुआत पद्मश्री मुकुटधर पांडे, लोचन प्रसाद पांडे, सुंदरलाल शर्मा ने किया। इसे आगे बढ़ाने का कार्य द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, प्यारेलाल गुप्ता और चतुर्वेदी ने किया। चतुर्वेदी ने हिंदी और छत्तीसगढ़ी में इतना लिखा कि वह एमए के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया और उनके रचना संसार का उपयोग रिसर्च में भी किया जाता है। चतुर्वेदी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर रविशंकर विश्वविद्यालय से तीन छात्रों को पीएचडी की उपाधि मिल चुकी है।

कार्यक्रम में सनत तिवारी ने चतुर्वेदी के व्यक्तित्व पर छत्तीसगढ़ी में एवं डा. अरुण कुमार यदु ने हिंदी में कविता पाठ किया। कान्यकुव्ज ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष अरविंद दीक्षित, नगर निगम में उप नेता राजेश सिंह ठाकुर, राघवेंद्र दुबे ने चतुर्वेदी के जीवन के विभिन्न आयामों पर अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में पूर्व मेयर किशोर राय, बिलासपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष वीरेंद्र गहवई, पूर्व अध्यक्ष तिलराज सलूजा, राजकुमार तिवारी, डा. सोमनाथ यादव, एमआईसी मेंबर राजेश शुक्ला, संध्या तिवारी, पार्षद विजय यादव, सुकांत वर्मा, राजकुमार तिवारी, धर्मेश शर्मा, लक्ष्मीनारायण कश्यप, डा. प्रदीप निर्णेजक, विवेक तिवारी, संगीता बंजारा, डा. राजेंद्र कुमार पांडे, डा.एमएल टेकचंदानी, शशिकांत चतुर्वेदी, सूर्यकान्त चतुर्वेदी, राकेश पांडे, शुभा पांडे, अंबिका चतुर्वेदी, ममता चतुर्वेदी, अम्बर चतुर्वेदी, पियूष, बिंदेश्वरी वर्मा आदि उपस्थित रहे।

संस्मरणात्मक श्रद्धांजलि अर्पित करते पांडे ने कहा कि चतुर्वेदी ने 50 के दशक में अपने गांव कोटमीसोनार में रेलवे स्टेशन बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया। जब स्टेशन बनना तय हुआ तो उन्होंने गांव वालों की यह इच्छा भी नहीं मानी की गांव का नाम श्याम नगर हो। उन्होंने रेलवे के अधिकारियों को सुझाव दिया कि गांव में जिस समुदाय की आबादी अधिक हो, उस हिसाब से नामकरण करें। स्वर्णकार, सोनार जाति के लिए लोगों की आबादी अधिक पाई गई। लिहाजा, गांव का नाम कोटमीसोनार कर दिया गया। रेलवे स्टेशन बनाने के लिए उन्होंने 1958 में तत्कालीन रेल मंत्री बाबू जगजीवन राम जी के अकलतरा प्रवास पर उनसे भेंट की और अभिनंदन पत्र के सहारे रेलवे स्टेशन की अपनी मांग भी उसमें जोड़ दी। यह उनके काम करने का तरीका था, जिससे तत्कालीन रेल मंत्री बाबू जगजीवन राम जी प्रभावित हुए और मंच से ही उन्होंने रेलवे स्टेशन बनाने की घोषणा कर दी।

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