मध्य प्रदेश

वन ग्राम समिति की मेहनत से लौट रहा है वनों का खोया वैभव

भोपाल। वन विभाग ने माइक्रो प्लानिंग कर ग्राम वन समितियों के सहयोग से जंगलों की बहाली पर विशेष ध्यान दिया है, जिसके सुखद परिणाम मिलने लगे हैं। मंडला जिले का मनेरी वन ग्राम स्टाक मेपिंग (वर्ष 2004-14) क्षेत्र वनस्पति से रहित था और आरडीएफ (वन पुनर्घनत्वीकरण) के लिये चुना गया था। मनेरी ग्राम वन समिति का गठन कर उसे 186.92 हेक्टेयर वन प्रबंधन का काम सौंपा गया था। औद्योगिक क्षेत्र के आसपास होने के कारण यह वन क्षेत्र गंभीर जैविक दबाव में था। बावजूद इसके स्थानीय समुदायों ने अवैध कटाई और चराई के खिलाफ वनों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वर्ष 2003-4 और 2005-6 के बीच यहाँ जंगल बहाली का काम शुरू हुआ। इस काम में ग्राम वन समिति मनेरी का नेतृत्व कर रही महिला सुश्री कल्लू बाई मार्को ने वन संरक्षण और प्रबंधन के लिये समुदाय को संगठित करने में सराहनीय भूमिका निभाई। ग्राम वन समुदाय के अथक प्रयास और दृढ़ संकल्प के चलते आज यह क्षेत्र वन से बहाल हो गया है। इतना ही नहीं, बीते 2 सालों में समुदाय ने 3 हजार 526 सागौन और 31 ईंधन के ढ़र की कटाई कर लाभ भी कमाया है।

जनजातीय ग्राम वन समिति ने बहाल किया 192 हेक्टेयर में जंगल

वन विभाग ने स्थानीय समुदायों को वन प्रबंधन और उनकी बहाली में शामिल करते हुए प्रदेश के खाली वन क्षेत्रों को वन सम्पदा से समृद्ध करने में कामयाबी हासिल की है। झाबुआ जिले की बड़ी नाल्‍दी ग्राम वन समिति को लगभग 15 साल पहले 192 हेक्टेयर खाली वन क्षेत्र को बहाल करने की जिम्मेदारी दी गई थी। ग्राम वन समिति के सदस्य और ग्रामीणों द्वारा सालों से किये गये अथक प्रयासों से इस क्षेत्र का वन वैभव पुन: लौट आया है। जनजातीय समुदाय की आजीविका में वन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन की बहाली से आजीविका के संसाधन भी बढ़ने लगे हैं। वनों के कम होने से पारिस्थितिकी तंत्र में भी असंतुलन जैसी जलवायु समस्याएँ भी उत्पन्न होती है। वनों की बहाली से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने का एक उचित और स्थायी समाधान मिल गया है।

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