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राजस्थान; राजेंद्र राठौड़ की जनहित याचिका पर विधानसभा अध्यक्ष-सचिव को नोटिस: हाईकोर्ट ने दो सप्ताह में मांगा जवाब …

जयपुर । राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष और सचिव को नोटिस जारी किए हैं। कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष के पास पेंडिंग होने के मामले में उपनेता प्रतिपक्ष और बीजेपी के सीनियर नेता राजेन्द्र राठौड़ की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने ये नोटिस जारी किए। राठौड़ ने विधानसभा स्पीकर और सचिव के खिलाफ यह PIL लगाई गई है। हाईकोर्ट जयपुर बेंच के जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और विनोद कुमार भारवानी डिविजनल बेंच में मामले पर सुनवाई हुई। अपने केस की खुद पैरवी करते हुए राजेंद्र राठौड़ ने कहा- 91 विधायकों के सामूहिक त्याग पत्र से वर्तमान सरकार सदन का विश्वास खो चुकी है। लेकिन इसके बावजूद कैबिनेट मीटिंग्स कर नीतिगत निर्णय लिये जा रहे हैं। इसलिए इस्तीफे स्वीकार नहीं करने से घोर संविधानिक विफलता की स्थिति रोजाना पैदा हो रही है। जिसे रोकने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है। राज्य में 25 सितम्बर से मौजूद संवैधानिक संकट पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए।

राजेंद्र राठौड़ ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा- डिविजनल बेंच ने सुनवाई करने के बाद दो सप्ताह का नोटिस जारी किया है। अब ये मामला ज्यूडिशियल रिव्यू में आ गया है। मैं समझता हूँ अब उचित निर्णय होगा। क्योंकि हाईकोर्ट खण्डपीठ ने मामला सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है और नोटिस जारी कर दिए है। विधानसभा अध्यक्ष और सचिव पक्ष रखेंगे क्यों नहीं अब तक उन्होंने 70 दिन गुजर जाने के बाद भी इन इस्तीफों पर निर्णय नहीं किया। संविधान के आर्टिकल 190 (3)बी और 172 (2) के तहत उनके इस्तीफे स्वीकार क्यों नहीं किए। इन तमाम बातों का नोटिस के तहत वो जवाब देंगे।

उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि कांग्रेस में हुए अंतर्कलह और सियासी संकट के चलते 25 सितंबर 2022 को प्रदेश में कांग्रेस सरकार समर्थित 91 विधायकों ने कांग्रेस आलाकमान को चुनौती देते हुए अपनी- अपनी सीटों से स्वैच्छिक त्याग पत्र देने का निर्णय कर इस्तीफ़ा विधानसभा अध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से सौंपा था। लेकिन आज 2 महीने बाद भी त्यागपत्रों को स्वीकार नहीं किया गया है। त्याग पत्र देंने वाले मंत्री और विधायक अभी भी संवैधानिक पदों पर बैठे हैं। जिन पर बने रहने को उन्हें कोई अधिकार नहीं बचा है।

राठौड़ ने कहा कि सीट से स्वेच्छा से इस्तीफ़ा दिया जाना MLA का अधिकार है। 91 विधायकों से ज़बरन हस्ताक्षर कराए जाने या उनके त्याग पत्र पर किसी अपराधी द्वारा हस्ताक्षर कूट रचित कर दिए जाने की कोई सूचना अध्यक्ष के पास नहीं थी। इसलिए लिखित में अपने हस्ताक्षरों से व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो कर अध्यक्ष को इस्तीफ़ा पेश किए जाने पर उसे बिना देरी किए स्वीकार करना अध्यक्ष के लिए विधानसभा प्रक्रिया नियम 173 के अंतर्गत बाध्यकारी है। एमएलए एक जागरूक, शिक्षित व्यक्ति होता है और जब 91 सदस्यों ने सामूहिक रूप से बुद्धि लगा कर इस्तीफ़े देने का निर्णय लिया, तो यह नहीं कहा जा सकता कि 91 सदस्यों का ज्ञान सामूहिक रूप से फेल हो गया हो।

राठौड़ ने कहा कि इस्तीफों पर तत्काल प्रभाव से निर्णय लेने के संबंध में भाजपा विधायक दल और बाद में मेरे द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को कई बार पत्र लिखे गए। लेकिन उसके बाद भी इस्तीफ़े स्वीकार नहीं करने से इस्तीफ़ों को स्वीकार कर लेने की धमकी की आड़ में कांग्रेस सरकार में अशोक गहलोत ज़बरन मुख्यमंत्री बने रहें, यह योजना अंजाम दी जा रही है। अध्यक्ष के पद और प्रक्रिया का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग किया जाना अपेक्षित नहीं है। एक ओर तो 6 बसपा सदस्यों की ख़िलाफ़ दल बदल याचिका 3 महीने में निस्तारित करने के हाईकोर्ट के 24 अगस्त 2020 को दिए गए आदेशों का सम्मान नहीं किया जा रहा है। दूसरी ओर वालंटियरी इस्तीफे भी 65 दिनों से स्वीकार नहीं किए गए हैं। जबकि विधान सभा अध्यक्ष ने यह मामला जल्द निस्तारित करने का मौखिक आश्वासन 18 अक्टूबर को खुद मुझे दिया था।

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