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एक बार फिर अपनी सीट नहीं बचा पाए हरीश रावत, इन वजहों से मिली शिकस्त, पढ़ें हार के 5 मुख्य कारण …..

हल्द्वानी। उत्तराखंड के लिए 2022 का विधानसभा चुनाव अप्रत्याशित रहा। कांग्रेस की 40 सीटें जीतकर सत्ता में आने का दम भर रहे पूर्व सीएम हरीश रावत एक बार फिर अपनी ही सीट बचाने में नाकामयाब रहे। रातों-रात पैराशूट प्रत्याशी की तरह लालकुआं में लैंड करने वाले रावत को 16600 वोटों से करारी हार मिली है। वे लालकुआं में कांग्रेस की अंदरूनी कलह साधने और जमीनी पकड़ बनाने में भी कामयाब नहीं हो सके।

पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ीं संध्या डालाकोटी को कमतर आंकना भी नुकसान पहुंचा गया। भाजपा ने भी हरीश रावत के बाहरी होने के मुद्दे को खूब भुनाया। कांग्रेस के दिग्गज हरीश रावत को टिकट मिलने के बाद उत्तराखंड की लालकुआं सीट वीआईपी बन गई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा सीट से चुनाव हारने वाले रावत इस बार काफी एक्टिव नजर आ रहे थे।

रावत का दावा था कि वे अपनी सीट तो जीतेंगे ही साथ में उत्तराखंड में कांग्रेस बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। लेकिन रावत के सारे समीकरण उलटे पड़ गए। मतगणना के पहले चरण से ही रावत भाजपा प्रत्याशी डॉ. मोहन बिष्ट से पिछड़ते चले गए। ये सिलसिला अंत तक चला। लालकुआं सीट के वोटों की काउंटिंग 11 चरणों में हुई। जिसमें भाजपा के डॉ. बिष्ट को 44851 वोट तो हरीश रावत को केवल 28251 वोट मिले। इस करारी हार ने एक तरह से हरीश रावत की रणनीति और राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

हरीश रावत की हार के कारणों में एक सीटों को लेकर मचा घमासान भी रहा। पहले रामनगर से चुनाव लड़ने की जिद फिर महिला प्रत्याशी का टिकट काटकर लालकुआं से टिकट दे देना कांग्रेस को भारी पड़ गई। इससे न केवल महिला प्रत्याशी संध्या ने कांग्रेस से बगावत की बल्कि निर्दलीय प्रत्याशी बतौर करीब 4 हजार वोट भी पाए।

करीब पांच साल से रामनगर सीट पर अपनी सियासी जमीन मजबूत कर रहे वरिष्ठ कांग्रेसी रणजीत रावत और उनके समर्थकों की नाराजगी भी हरीश रावत को भारी पड़ गई। रामनगर से हरीश रावत के चुनाव लड़ने का रणजीत रावत ने विरोध किया। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने न तो रणजीत रावत न ही हरीश रावत को रामनगर से प्रत्याशी बनाया।

भले ही हरीश रावत उत्तराखंड की राजनीति का बड़ा चेहरा माने जाते हैं मगर, चुनावों में उनका मैनेजमेंट अक्सर धराशायी हो जाता है। रावत ने बयान जारी कर कहा था कि वे लालकुआं सीट पर पहले ही दिन से अपनी जीत निश्चित मानकर चल रहे हैं। इसी अतिविश्वास और जमीनी स्तर पर कमजोर पकड़ ने रावत से जीत छीन ली।

अपनी जिद के आगे हरीश रावत ने कांग्रेस हाईकमान को कई बार झुकाया। पहले चहेतों को टिकट देने को लेकर रावत अड़े रहे, फिर खुद के टिकट को लेकर वे दिल्ली से दून तक चक्कर लगाते रहे। लालकुआं से रावत को टिकट देने के चक्कर में कांग्रेस ने संध्या डालाकोटी का घोषित टिकट काट दिया। जिसके बाद से लालकुआं विस क्षेत्र में कांग्रेस के दो धड़े बन गए थे। संध्या के निर्दलीय चुनाव लड़ने के ऐलान को भी रावत जैसे अनुभवी नेता ने हल्के में ले लिया।

हरीश रावत का राजनीति में कद देखते हुए कांग्रेस हाईकमान चुनाव में उन्हें उनकी मनचाही सीट पर टिकट दे देती है। जबकि, इसका फायदा उन्हें शायद ही कभी भरपूर मिला हो। वर्ष 2017 चुनाव में वे हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा से चुनाव लड़े थे। जहां अपनी खुद की जमीनी पकड़ न होने के कारण उन्हें करारी हार मिली। यही इस बार फिर दोहराया गया। लालकुआं में भाजपा ने उन्हें पैराशूट प्रत्याशी प्रचारित कर इसका राजनीतिक फायदा उठाया।

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