महापौर चुनाव: हाईकोर्ट में अशोक ने दी चुनौती
महापौर से प्रथम नागरिक का दर्जा और जनता से रीकॉल का अधिकार छीन रही कांग्रेस : चावलानी
कोरबा(गेंदलाल शुक्ल)। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आने के बाद आगामी नगरीय निकाय चुनाव प्रत्यक्ष की बजाय अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने जा रही है अब जनता सीधे अपने महापौर का चुनाव नहीं करेगी बल्कि वार्ड पार्षद बहुमत के आधार पर महापौर चुनेंगे l आज कोरबा के भाजपा जिलाध्यक्ष अशोक चावलानी ने छत्तीसगढ़ शासन की नई चुनाव व्यवस्था को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट अधिवक्ता आशुतोष पांडे एवं ए.वी श्रीधर ने उनकी याचिका दायर करते हुए छत्तीसगढ़ शासन की इस नई चुनाव व्यवस्था को चुनौती दी है l
अधिवक्ता द्वय ने बताया कि उन्होंने छत्तीसगढ़ शासन द्वारा नगरीय निकाय चुनाव को लेकर जारी नई व्यवस्था के विरुद्ध 10 बिंदुओं पर याचिका दायर की है जिसमें महापौर पद के संवैधानिक दर्जे सहित जनता की अधिकारों के हनन का मामला माननीय न्यायालय के समक्ष रखा गया है याचिका में उल्लेखित बिंदु में कहा गया है कि महापौर को अध्यक्ष के चुनाव में मतदान का अधिकार समाप्त कर दिया गया है,जिसके परिणाम स्वरूप महापौर जिस वार्ड से चुन कर आया है उस वार्ड के मतदाताओं का अध्यक्ष पद पे चुनाव अधिकार सीधे तौर पे उल्लंघन हो रहा है|
धारा 17ब में संसोधन के परिणाम स्वरूप महापौर के शपथ कार्यप्रणाली खत्म कर दी गयी जिससे जनप्रतिनिधियों की प्रामाणिकता पर संवैधानिक प्रश्नचिन्ह लगता है|
नगरपालिका के कार्यकाल की अवधि में संशय पैदा करने वाला अधिनियम लागू किया है धारा 20 में संशोधन निगम के विघटन में धारा 422 ब में संशोधन के परिणाम स्वरूप ऐसा प्रतीत महापौर निगम की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है जो कि धारा 9 के विरोधाभासी है जिसमे महापौर निगम की संरचना का महत्वपूर्ण अंग है।
महापौर के चुनाव को पूर्व में मतदाता को अधिकार था कि वो निर्वाचन याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दिया जा सकता था परंतु धारा 441 में संशोधन परिणाम स्वरूप अब सिर पार्षद ही चुनौती दे सकता है जिसके परिणामस्वरूप मतदाताओं के जन भावनाओ का उल्लंघन है|
महापौर के चुनाव गुटबाजी तथा भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ जाएगा। आरक्षण की बातों में विरोधाभास हैं धारा 11 में संशोधन के परिणाम स्वरूप.महापौर का चुनाव सीमित पार्षदों के माध्यम से किये जाने के परिणाम स्वरूप निगम के विघटन की संभावनाएं बढ़ जाएंगी जिससे आम जन की जन भावनाएं आहत होंगी। महापौर के चुनाव को जो कि शहर के प्रथम नागरिक की भूमिका स्पष्ट करता है उसके चुनाव से आम जनता को वंचित करना स्वयं में कहीं न कहीं संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन है।