मध्य प्रदेश

बागेश्वर धाम के महंत पं. धीरेंद्रकृष्ण शास्त्री बोले: भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बन पाया तो मेरा संकल्प बिखर जाएगा

सागर के बहेरिया में चल रही बागेश्वर धाम प्रमुख की श्रीमद्भागवत कथा

सागर। जब राम जन्म हुआ तब एक महीने तक दिन रहा, सूर्यकुल भूषण को देखने सूरज भगवान डूबे ही नहीं तो वहीं रात इसीलिए परेशान थी कि मुझे दर्शन नहीं मिल रहे। जब महीने भर बाद रात ने भगवान से कहा तो भगवान ने विश्वास दिलाया कि द्वापर युग में भादों के महीने में रात के 12 बजे जन्म लूंगा इसीलिए राम जन्म का दिन बड़ा माना जाता है तो कृष्ण जन्म की रात बड़ी होती है। यह बात बागेश्वरधाम के पीठाधीश्वर पं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने सागर के बहेरिया में हो रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन कही।

उन्होंने कहा कि भगवान जब गोकुल पहुंचे तो उनके दर्शन करने भोलेनाथ भी पहुंचे, देवी देवता पहुंचा सुंदर भजनों के माध्यम से उन्होंने इस कथा का वर्णन किया। जब मां यशोदा ने भोले बाबा के जटा जूट देखकर भगवान के बाल रूप के दर्शन नहीं दिए की कहीं बालक डर न जाये। तो भगवान रोने लगे जब मां यशोदा बाहर लेकर आईं तब भोले बाबा की गोद मे आते ही रोना चुप किया। कथा में भगवान की विभिन्न बाल लीलाओं के प्रसंग हुए। उन्होंने कहा कि जब भगवान का जन्म हुआ तब नंद बाबा और देवकी बस जाग रहे थे बाकी सब सो रहे थे। ऐसे ही जब हनुमानजी महाराज सीता माता का पता लगाने लंका में गए तब भी सब सो रहे थे बस विभीषण जाग रहे थे। भगवान की लीला ही यही है कि जब वह आये हैं तब पापी सो जाते हैं और भक्त जाग जाते हैं।

राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहां विश्राम…

कथा आरंभ में उन्होंने कथा का सूत्र बताया। उन्होंने कहा कि काम के बंदर नहीं राम के बंदर बनो, आलस्य नहीं करना चाहिए। हनुमानजी महाराज से सीखिए राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहां विश्राम, भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बन पाएगा तो मेरा संकल्प बिखर जाएगा। इसीलिये में भी विश्राम नहीं करता। निरंतर राम नाम की अलख लिए अनवरत रहता हूं।

भगवान एक ही तत्व हैं…

भगवान एक हैं जिस तर हम एक हैं लेकिन किसी के लिए भाई, किसी के लिए चाचाए, किसी के लिए मित्र हैं। जिस तरह स्वर्ण एक है लेकिन उसे अलग अलग आभूषण बन जाते हैं। जिस तरह एक ही मिट्टी से अलग अलग चीजें बन जाती हैं ऐसे ही भगवान भी एक हैं।

सत्यनारायण की कथा, चटपटा अंदाज…

एक सेठ ने मुझसे कहा – सत्यनारायण की कथा करा दो मोटरसाइकिल से खेत मे पहुंचे जहां उनका घर था। संकल्प कराया सत्यनारायण की कथा की पुस्तक की जगह गुरुवार की कथा थैले में रख ली थी। अब संकट फंस गया, लेकिन हम छोटे से ही थे। इसलिए जल्दी जल्दी गुरुवार की ही बांच दी। सेठ ने कहा गुरुजी आप हैं तो विद्वान लेकिन लीलावती कलावती कहां गयीं। हम भी बुंदेलखंड के हमने भी कह दिया बड़े घराने की बेटियां जंगल में कहां आती। लेकिन इतना स्पष्ट है कि सत्यनारायण की कथा के विषय में हर कोई जानता है।

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