मध्य प्रदेश

पीपीएससी ने सरकार को दिया झटका: सीधी भर्ती से ही भरे जाएंगे डीएसपी के खाली पद, इंस्पेक्टरों को नहीं मिलेगी पदोन्नति…

भोपाल। मध्य प्रदेश में लंबे समय से पदोन्नति की उम्मीद लगाए बैठे पुलिस इंस्पेक्टरों को प्रमोशन के लिए फिर इंतजार करना पड़ेगा। राज्य लोक सेवा आयोग (एमपी पीएससी) ने सीधी भर्ती के इन पदों को पदोन्नति से भरने से इनकार कर दिया है। प्रदेश में डीएसपी के 246 पद खाली हैं। इनमें से 138 पदों को पदोन्नति के जरिए हाल ही में भरा गया था और इंस्पेक्टरों को कार्यवाहक डीएसपी बनाया गया था। प्रदेश में 2020 में पीएससी की परीक्षा आयोजित नहीं हुई थी। एक बार की पीएससी परीक्षा में लगभग 35 पद डीएसपी के होते हैं। ऐसे में इन पदों को भरने में करीब 4 से 5 साल का वक्त लगेगा।

सरकार ने इंस्पेक्टरों के प्रमोशन को लेकर आयोग से राय मांगी थी, लेकिन आयोग ने इससे इनकार कर दिया। गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. राजेश राजौरा के अनुसार पिछले महीने पुलिस मुख्यालय ने राज्य शासन को प्रस्ताव दिया था कि प्रमोशन में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। ऐसे में इन पदों पर प्रभार देकर नियुक्ति की जा सकती है। इस प्रस्ताव से सरकार सहमत थी, इस पर लोक सेवा आयोग से परामर्श लिया गया लेकिन आयोग ने असहमति जताई। अब डीएसपी के 138 रिक्त पद पदोन्नति के बजाय सीधी भर्ती से ही भरे जा सकेंगे।

उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पहले से स्वीकृत डीएसपी के पदों के अलावा लगभग 200 नए पदों की और जरूरत है। इन पदों के लिए सरकार नए नियम बनाकर पदोन्नति का रास्ता साफ कर सकती है। हालांकि, इससे सीधी भर्ती के पद कम होंगे। यह भी बताया जा रहा है कि पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने से इन पदों पर भी उच्च पद का प्रभार देकर नियुक्ति की जा सकती है।

मध्यप्रदेश में वर्ष 2016 में जबलपुर हाई कोर्ट द्वारा प्रमोशन में आरक्षण और रोकने संबंधी आदेश के बाद से सभी सरकारी कर्मचारी अधिकारियों के प्रमोशन रुके हुए हैं। दरअसल, राज्य सरकार इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट चली गई थी और राज्य सरकार चाहती थी कि प्रमोशन में आरक्षण जारी रहे। इन पांच साल में सैकड़ों अधिकारी कर्मचारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो गए। हालांकि, राज्य सरकार ने रिटायरमेंट की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी। इससे कर्मचारियों को प्रमोशन का पद भले न मिला हो, उन्हें वेतन भत्तों का नुक़सान नहीं हुआ।

हालांकि, प्रमोशन में आरक्षण के कारण अधिकारियों और कर्मचारियों को सेवाकाल में असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में 1990 बैच तक के आधे इंस्पेक्टर ही कार्यवाहक डीएसपी बन पाए हैं। यह लोग 1990 में थानेदार (सब इंस्पेक्टर) बने थे। इससे उलट आरक्षित वर्ग के थानेदार जो उनसे 10 साल बाद थानेदार चयनित हुए, वे काफी पहले पदोन्नत होकर डीएसपी बन चुके हैं। इस विसंगति के कारण अफसरों में रोष भी है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में यह बड़ा राजनैतिक मुद्दा भी बना था।

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