धर्म

महिलाओं के लिए सौभाग्यशाली, समृद्धि शाली है वट सावित्री व्रत …

कोलकाता। अखिल भारतीय  उत्तराखंड युवा प्रतिनिधि मंच द्वारा 10 जून को होने वाले वट सावित्री व्रत के उपलक्ष्य में अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित किया गया। जिसमे वक्ताओ ने व्रत महिमा एवं वट वृक्ष की महत्ता, उसके औषधीय गुण, पर्यावरणीय दृष्टि से वटवृक्ष की महत्ता, पूजा विधान व उसके वैज्ञानिक पक्षों के बारे में अपने-अपने विचार रखे।  देश-विदेश से आमंत्रित वक्ताओं ने बताया कि भारतीय संस्कृति में विवाहित महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण सावित्री व्रत रखने का मुख्य कारण यह है कि इस व्रत से नारी को अखंड सौभाग्य, संतान सुख ,स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा तने में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास है इसके अतिरिक्त इसमें सरस्वती का वास माना जाता है। सखियों वट पूजना ,सखियों फेरी लगाना,सखियों जीवित रखना इस परंपरा को। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार व समाजसेवी जिया हिन्दवाल ने तथा धन्यवाद ज्ञापित उपाध्यक्ष तनु खुल्बे ने किया।

बाखई कुटुंब द्वारा गूगल मीट पर आयोजित वट सावित्री  वेबीनार सजना तेरी ज़िन्दगानी रहे की शुरुआत  में गीतांजली शर्मा,अमेरिका ने विदेश में रह कर वट सावित्री व्रत  करने के बारे में बताया। काठमांडू की बिमुन्स पोडेल ने नेपाल में वट सावित्री व्रत किस तरह किया जाता है की जानकारी दी व वट सावित्री पर अपनी गज़ल भी सुनाई। वन्या जोशी,मुंबई ने कुमाऊँ उत्तराखंड में वट सावित्री किस तरह मनाया जाता है उसके बारे में रोचक जानकारी दी साथ ही कोरोना काल में बाहर ना जाकर घर पर ही यह व्रत मनाने की सलाह दी, सावित्री शर्मा,देहरादून ने व्रत कथा सुनाने के साथ कोरोना पर कविता भी सुनायी।

डा.शीला भार्गव,नागपुर ने वट वृक्ष का पौराणिक व औषधीय ज्ञान दिया इसके साथ ही सौभाग्यवान शब्द केवल महिलाओ के लिये ही नहीं पुरूषो के लिए भी प्रयोग होना चाहिये बताया। रूपा सचदेवा,न्यूज़ीलैण्ड ने बताया कि वह विदेश में रह कर भी भारतीय संस्कृति व परम्परा का प्रसार कर रही हैं।

पूनम भट्ट,दुबई ने बताया कि हम चाहे कही भी रहे पर हमे अपनी संस्कृति व परम्परा से जुड़े रहना चाहिये व अपने बच्चो को भी सिखाना चाहिए जैसे उनकी माता प्रेमा पांडे ने अपने बच्चो को सिखाया है। प्रीती कश्मीरा,उत्तराखंड ने वट सावित्री व्रत के विषय पर विस्तृत जानकारी देते हुए नारी पर स्वरचित कविता सुनायी, डा. आशा गुप्ता,जमशेदपुर जो स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं ने बताया वृक्षों में भी प्राण होते हैं उन्हे काटना नही चाहिये।

अल्पना सिंह, कोलकाता ने ग्रहो की जानकारी देते हुए बताया कि राहु काल में पूजा नही करनी चाहिये तथा बंगाल में महिलाये निर्जला रह कर वट सावित्री करती हैं। हिंदी परंपराओं के अनुसार ‘वट सावित्री’ श्रद्धा व आस्था का व्रत है। जिसे ‘बड़ अमावस्या’ के नाम से भी जाना जाता है। यह महिलाओ का मनपसंद पर्व-त्यौहार है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होने के लिए इस व्रत को करती हैं। सूर्य ग्रहण पश्चात इस व्रत का को धारण करती हैं।

इस वर्ष 10 जून 2021 दिन बुधवार को अमावस्या के दिन ‘वट सावित्री’ मनाया जाएगा।इस व्रत के संबंध में महत्वपूर्ण बात यह है कि इस व्रत धारण करने वाली सुहागिन ‘राहुकाल’ का विशेष ध्यान रखें। राहु काल में इस व्रत की पूजा-स्तुति नहीं होती है। इस वर्ष 10 जून को दोपहर 2:30 से 3:00 बज कर 47 मिनट तक राहुकाल रहेगा।वट सावित्री को वटवृक्ष  की उपासना की जाती है। ज्योतिषियों की मान्यता है कि वटवृक्ष के मध्य ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों का वास होता है। इसलिए इस पेड़ की पूजा करने पर तीनों देवों की असीम कृपा सुहागिन महिलाओं पर पड़ती है और उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद भी लाभ होता है। इसलिए सुहागिन  सोलह श्रृंगार कर, पूजा की समस्त सामाग्री के साथ असीम आस्था और भक्ति से गौरी व शंकर की पूजा वट वृक्ष के तले करती हैं।भजन-कीर्तन गायन करके देवताओ को प्रसन्न करती हैं।अपने परिवार,संतान,पति पर आने वाले  संकटों के निवारण हेतु विनय, स्तुति,आराधन करती हैं।

गीता सचदेवा, मेरठ ने वृक्ष लगाने व आने वाली पीढ़ी को इन्हें बचाने का संदेश देते हुए कहा वट वृक्ष दीर्घायु व अमरता का प्रतीक हैं,रति चौबे,नागपुर ने वट सावित्री व्रत से जुड़ी कुछ खास व रोचक जानकारिया देते हुए पति-पत्नी के रिश्ते को सूत के समान नाजुक बताया जिसे वट वृक्ष के तने समान बलिष्ठ संबल मिल जाये तो वह हमेशा मजबूती से बंधा रहता है।उन्होने सावित्री व सत्यवान पर स्वरचित गीत भी सुनाया जिसने सबका मन मोह लिया।शशी भार्गव ‘प्रज्ञा’,नागपुर ने बताया जितनी स्त्री समाज में विशेष हैं उतना ही पुरुष भी विशेष हैं ।

संस्था की उपाध्यक्षा तनु खुल्बे  ने-सखियों वट पूजना ,सखियों फेरी लगाना,सखियों जीवित रखना इस परंपरा को,केवल सौभाग्य के लिये नही, बल्कि,जगत के लिए भी,वट होगा और पीपल होगा तो बची रहेंगी सांसें…बोलकर अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार का खूबसूरती से समापन किया तथा संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष हरीश उपाध्य्याय जिन्होने इतने सुन्दर विषय पर वेबीनार आयोजित कर सबका ज्ञान वर्धन करने का अवसर प्रदान किया उनका हार्दिक आभार व्यक्त किया तथा भविष्य में भी वे इसी तरह से हमारी प्रथा, संस्कृति का प्रसार करने के लिये रोचक विषय पर वेबीनार कराते रहेंगे ये आश्वासन लिया।कार्यक्रम का कुशल संचालन ज़िया हिन्दवाल उत्तराखंड ने किया।

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