लेखक की कलम से

तुम मेरे पास पास रहना…

हज़ारों आएंगी आँधियाँ

लाखों आएंगे तूफ़ान

लेकिन

तुम मेरे पास पास रहना

अनेक बार मैं होऊंगा

उदासी की

खूबसूरत लड़की का हाथ पकड़े

खुदकशी की राह पर चलता

इस विषकन्या के होठों को

चूमने की कोशिश करता

मेरे भीतर सुलग़ती होगी मौत

तुम मुझे

ज़िंदगी के बारे में बताना

बहुत बार मैं होऊंगा

परस्थितियों के चक्रव्यूह में घिरा

मेरा अर्जुन बाप

लड़ रहा होगा दूर

शकुनि की चालों में उलझा

मेरे इर्द गिर्द होगी

साजिशी तीरों की बरसात

उस वक्त

तुम मेरे हाथ में

रथ का टूटा हुआ

पहिया बन जाना

बहुत बार मैं होऊंगा

काँटों की सेज पर लेटा

देख रहा होऊंगा

अपने ही हिस्सों को

अपने पर बाण चलाते

अपने ही जिस्म पर घाव लगाते

तब तुम मेरे माथे पर

अपना नरम हाथ रख देना

कितनी बार मैं होऊंगा

बेगानगी की बारिश में भीगता

अपनी अग्नि में सुलगता

भीगी हुई किसी रात को

सीली पवन अपने बदन पे लपेटे

अकेला भटक रहा होऊंगा

तुम मेरा हाथ पकड़ कर

मुझे मेरे

घर का रास्ता बताना

कितनी बार मैं होऊंगा

खामोश रात में

अतीत के बंद दरवाजे पर

दस्तक देता

दूर छूट गए घर को याद करता

दीवारों के मिटते रंग देखता

अपने सर पर अनगिनत

इलज़ाम लिए

सिसक रहा होऊंगा

तब तुम मेरी

भीगी आँखों के लिए

कन्धा बन जाना

हज़ारों आएंगी आँधियाँ

लाखों आएंगे तूफ़ान

लेकिन

तुम मेरे पास पास रहना

कविता !

©अमरजीत कौंके, पटियाला

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