लेखक की कलम से

रोटी की कीमत …

हमारे पूरे भारत में रोटी ही तो है, जो अधिकांश हर इंसानों की कमज़ोरी बनी हुई है।

आज जो बेसहारा मजदूरों की दशा हो रही है वो नही होती,

हमारे भारतीय संस्कृति भी गजब की है, किसी को तकलीफ देख कर सिर्फ लफ्जों से दुःख प्रकट किया जाता है, ज्यादा अगर शोक मनाना है तो कलम के द्वारा लिख कर उपदेश देगें। इससे भी दिल ना भरे तो। न्यूज चैनल पर खुद को प्रसारित कर के भाषण देने के बाद चैन की नींद सो जाते है। मेंरा मतलब किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है, मैं कहना चाहती हूं क्या ये सब कुछ कर के उन मज़बूरों का जो मिलों सफर करते हुए आ रहे हैं, क्या आपके शोक प्रकट करने से उनके पांव के छाले कम हो गए। क्या उनकी भूख मिट गई, क्या पोटली के बोझ से उनकी कंधों का दर्द कम हो गया। एक टाईम के खाना दे देने से क्या उनकी दिन और रात की भूख मिट गई ? क्या उनके प्यास और भूख से बिलखते छोटे-छोटे बच्चों को आराम मिल गया। उनके परिवार जो बैचैनी से उनकी राहे देख रहे हैं उन्हें चैन मिल गया।

लाकडाऊन से पहले उन्हें सिर्फ दो दिन का मौका दिया जाता तो उन्हें इतनी मुसीबत का सामना करना नहीं पड़ता। जो अपने घर में हैं, जो सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं उन्हें (कोरोना) का भय सता रहा है। न कि उन गरीब मजदूरों का, उन्हें तो बस एक गम सता रहा है कि कैसे पैदल चलकर अपने घर पहुंच जाऊं, कैसे मैं इस सफर में अपने बच्चों का पेट भरूं इस कड़कती धूप में कहा छांव मिले तो मै थोड़ा छाया में खुद को आराम दूं।

हमारे भारत के नेता ऐसा नेतृत्व करते हैं, कि शब्दों के जाल में कब फंसा दे अच्छे अच्छे लोगों को तो पता ही है चलता। ये बिल्कुल सत्य और स्पष्ट है कि सिर्फ एक गलत फैसले से इन मजदूरों को तकलीफ झेलनी पड रही है। मीलों दूर से पैदल अपनी मंजिल को तय कर रहे हैं। हम नागरिक तो शब्दों से सिर्फ दु:ख ही जाता सकते हैं और कर भी क्या सकते हैं। अब तक जो सुनने में आ रहा है कि मजदूरों की मदद करना चाहती है सरकार उसमें भी तर्क-वितर्क हो रहा है। अपोजिशन पार्टी की इसमें भी राजनीति दिखाई दे रही है।

जहां बड़े स्तर के लोगों को बड़े सम्मान से उनके घर पहुंचाने में मदद की जा रही है, सरकारी सुविधा दी जा रही है।

भारत में स्तर को मापा जाता है, इस भारत की यही हकीकत है। यही कारण है आज हमारा महान भारत पीछे की ओर जाते दिखाई दे रहा है। जबकि सरकारी सूची के मुताबिक भारत के हर नागरिक के बारे में जानकारी होती है कौन कहां है। कितने लोग कहां फंसा है। इस सबको नजरअंदाज कर के सरकार ने अपना फैसला सुना दिया।

नतीजा आपके सामने है। अब जब मजदूर बड़ी तादाद में घर की ओर लौट रहे हैं तो ये कैसा ‘सोशल डिस्टेंस’ है। अब सरकार इस पर क्या बोलेगी, कुछ कहने को बाकी है …

©तबस्सुम परवीन, अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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