लेखक की कलम से

मुस्कान …

लाख आपदाएं संग है तेरे,
पर क्या तू हार जाएगा,
गमो को जीतने को,
क्या नही मुस्कायेगा।
हर और घनघोर अंधेरा है,
निराशाओं ने घेरा हैं,
न कही कोई छाँव है,
पाँवो में होते घाव है,
प्रतिकूलताएँ भी है,
साधन भी नही है,
तो कैसे हार जाएगा तू,
ले प्यारी मुस्कान,
तब गम को हराएगा तू,
एक आशा की किरण जगाए,
मुस्कान जो दिलो पर छाए,
केवल मुख से नही,
दिल से मुस्काना जरूरी हैं,
बस मुस्काना जरूरी है,
बिना इसके हर बात अधूरी है।।

 

 

©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी            

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