लेखक की कलम से
सन्नाटे में जिंदगी …
ऊहापोह में सोचें सारे
काम करें या घर जाएं
आमदनी भले बंद कर दी
पापी पेट कहां चुप सोए
सूनी गलियां सूनी आंखें
सपनों की सब टूटी पाखें
महामारी की बड़ी सियासत
सब लोग अपनी बगली झांकें!
©लता प्रासर, पटना, बिहार
ऊहापोह में सोचें सारे
काम करें या घर जाएं
आमदनी भले बंद कर दी
पापी पेट कहां चुप सोए
सूनी गलियां सूनी आंखें
सपनों की सब टूटी पाखें
महामारी की बड़ी सियासत
सब लोग अपनी बगली झांकें!
©लता प्रासर, पटना, बिहार