लेखक की कलम से
चाय …
चाय तो एक बहाना हैं,
बस दिलो को अब मिलाना हैं।
वक्त ने भुला दिए जो रिश्ते,
आज उन्हें फिर करीब लाना है।।
बहुत दिख रहे हैं बुझे चेहरे,
बस आज उन्हें कुछ हँसाना है।
रूठे हुए सब दोस्तो संग,
आज मिल मुस्काना हैं।।
न पीते चाय तो क्या,
आज तो हर्बल का ज़माना हैं,
कैफीन से भी कुछ तो,
दूरी अब बनाना है।।
चाय पकोड़ो संग,
बस बारिशों का लुत्फ उठाना है,
कुछ हर्बल चाय भी चखो जरा,
सेहत का ये खज़ाना हैं।
कुछ गुड़,तुलसी,अदरख संग,
कुछ और स्वादिष्ट बनाना है,
कुछ काढ़े का रूप में भी,
हर्बल चाय का ज़माना हैं।
बाद जाती प्रतिरोधक क्षमता भी,
ये सेहत का ऐसा खज़ाना हैं,
आओ जरा लुत्फ इसका भी लो,
मौसम भी जरा सुहाना है।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी