क्यों है कुदरत खफ़ा? …
चलो मन को कुछ शांत कर लें।
रात से कुछ बात कर लें।
कुछ अपनी कह लें।
कुछ उसकी सुन लें।
कुदरत का कोई तो नियम होगा।
दिन रात का कोई तो अनुपात होगा।
रात की यूं कैसे मनमानी चलेगी।
सूरज को रोक खुद कैसे आगे बढ़ेगी?
चलो सूरज से कुछ बात कर लें।
कुछ अपनी कह लें,
कुछ उसकी सुन लें।
रात से क्या कोई करार किया है?
किरणों को मुट्ठी में जो रख लिया है।
सूरज का ताप क्या कम हो गया है?
गम के बादलों के पीछे जो छुप गया है।
आओ बादलों से कुछ बात कर लें।
कुछ अपनी कह लें,
कुछ उनकी सुन लें।
इंद्र देव से क्या आदेश मिला है?
सावन की फुहारों को
खुद में समेट लिया है।
आसमान को स्याह कर
इधर उधर घूम रहे हो।
गड़गड़ाहट कर सबको डरा रहे हो।
पुरवाईयों की डगर रोक रहे हो।
आओ हवाओं से कुछ बात कर लें।
कुछ अपनी कह लें।
कुछ उनकी सुन लें।
हवा की शुद्धता क्यों हवा हो गई ?
वायरस की कैसे हमसफ़र बन गई ?
सांस लेना भी दुश्वार हो गया।
हर चेहरे पर मास्क का अनावश्यक
आवरण आ गया।
एक बेहद बुनयादी जरूरत से
इंसान महरूम हो गया।
आखिर इस बेरुख़ी का सबब़ क्या है?
देना चाहती हो इंसान को
आख़िर वो सबक़ क्या है?
फुसफुसा कर सबने यही कहा
मानव ने की है कुछ तो ख़ता।
बेवज़ह कुदरत होती नही है खफ़ा।
©ओम सुयन, अहमदाबाद, गुजरात