लेखक की कलम से
देख लम्हा बड़ा बईमान हो गया …
आज दर्द तूने कैसे दिए मेरे रब,
नयनो के आँसू न थाम पाऊ
पथरीली कठिन राहों में,
नंगे पाँव भी चलते गए,
कई राते मैं सो न पाये,
देख लम्हा बड़ा बईमान हो गया ||
मासूम कुम्हलाए हुए भूख से,
सोए माँ के गोद बनी ये बिछौने,
अर्ज करू तो मैं कैसे करूँ,
सर पे तो बोझा ओ ढोई हुई,
मुशीबतों को चीर चलती गई,
देख लम्हा बड़ा बईमान हो गया ||
पाँव की पीड़ा अब तो छाले पड़े,
रोटी कहीं पथ में बिखरी पड़ी,
ये दर्द बयाँ करू तो मैं कैसे करूँ,
पिता के शव देख बेटा बिलखते हुए,
देख लम्हा बड़ा बईमान हो गया ||
बूढ़ी अम्मा पिता के तुम सहारे,
न जाने आज वे कहाँ छिप गये,
काली रात भयंकर अमावश की,
मैं ढूँढूँ तो ढूँढूँ कहाँ नयन के तारे,
हृदय में शिला अब रखूँ तो कैसे,
देख लम्हा बड़ा बईमान हो गया ||
©योगेश ध्रुव, धमतरी, छत्तीसगढ़