लेखक की कलम से

रास्ता मेरे गाँव का …

याद बहुत आए मुझे रास्ता मेरे गाँव का।

मुसाफ़िर सा साथ चलता रास्ता मेरे गाँव का।

कही संकरा कही चौड़ा लहराता कही नागिन सा,

झरने की लड़ियाँ ऐसा है रास्ता मेरे गाँव का।

 

यादों के वातायन में सजे अब भी गाँव।

चहके जहाँ पक्षी ना रहे कोई बैर भाव।

माटी की ख़ुशबू बुलाए मुझे हर पल,

पुरुषार्थ की बयार मुस्कुराती बहे मेरे गाँव।

 

तुहिन कण सजे जब धान की बाली।

लगे यूँ जैसे झूमे मगन नार नवेली।

निशानाथ मगन हो घूमे घर आँगन,

चंद्रिका भी मगन लगाए अठखेली।

 

प्रदूषण का नामोंनिशा ना यहाँ।

सरसता बहती हर छोर जहाँ।

परिश्रम की बगिया महके सदा,

अपनेपन की पुकार बसती सदा।

 

भोर की लाली पड़े जब धरती पर।

खिल आए मौसम बहार धरती पर।

पैडों की करतल नीम की छैयाँ,

शहर जैसा ना हो प्रदूषण यहाँ पर

 

©सवि शर्मा, देहरादून

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