लेखक की कलम से
तेरी मुहब्बत ….
हमें तुमसे मुहब्बत हो गई है,
बिना सोचे शरारत हो गई है।
बताये हम तम्हें कैसे ये बातें,
यही हमसे हिमाकत हो गई है।
तेरे बारें मे सोचे दिल ये मेरा,
मेरी तुमसे रिफाकत हो गई है।
अगर मेरे नही अब तुम हुए तो ,
समझ लो बगावत हो गई है।
मै “झरना ” जो बनी उल्फ़त में तेरे,
चखो उल्फत जो शर्बत हो गई है।
©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड