लेखक की कलम से
समय और वजह….
मुस्कराने और रोने की
अब वजहें बदल गईं हैं
वो चंचल, निश्चल हंसी
छल की गहराईयों में ढल गईं हैं !
अब हंसते कम
बस, हंस लेते हैं
जो जगह थी हंसने की
वहीं जी भर रो लेते हैं !
फिर भी एक अच्छी बात तो है
बचपन से जवानी में
तब संभालता था कोई और
अब हो गए हैं इस लायक
कि खुद ही संभल लेते हैं
चाहे दे कोई कितने भी आँसू
हंसने की वजह बदल देते हैं
©डॉ. अनिता शर्मा, हेवर्ड कैलिफोर्निया