लेखक की कलम से

चलो अब थोड़ा सा हंसो ना मां….

हर बेटी के अरमान मां के नाम….

बहुत खूबसूरत ये हाथ हुआ करते थे

मां आज भी मेरी नानी की बातों को दोहराया करती है

मेरे नानाजी की उर्दू के किस्से बताया करती है

हमारे घर में कोई नहीं लिखता अब पता लगता की

ये मेरे अंदर कहां से उमड़ा करतें हैं

बस अब उम्र उमड़ कर जरदोजीं की चादर ओढ़ मां इतराया करती हैं

कहा बहुत, मां अलता बैठ कर लगा लिया किया करते हैं

सरल को आदर सुंदर ख़्वाब सजाया करते हैं

मासूमियत भरी अदाकारी से जो ज़िन्दगी जिया करते हैं

मां बस यहीं ख़त्म नहीं होती जरदोजीं की चादर की पहचान ?

तुम से सुंदर आज भी कोई नहीं कहा करते हैं

उमर कदम ब कदम साथ चाहती हैं

पांव है, के कुछ धीमी गति को तेज होने पर डांट देते हैं

जैसे कुछ करने से पहले हमारा मस्तिष्क हर हिस्से को आगाह करता हैं

वैसे ही आपके अमूल्य योगदान ये पुराना सिक्का बराबर से संभाल कर रखा करते हैं

अपने आप को पक्का किया करते हैं

जैसे आपकी पुरानी गुल्लक ज्यादा मज़बूत है

मेरी लिखी चिट्ठी भी छिपा कर रख लेती है

इतने चिड्डड की आवाज़ के बीच कुछ नोट और

कुछ ख़त याद भर भर कर अंतर मन की आवाज़ को दोहराते हैं

मां जो छोटी चम्मच दही कुछ करने से पहले खिलाया करती है

हर हिस्से को लपेटकर संभाला मैंने कहा ठीक वैसे ही जैसे सीखाया है

तमाम उम्र उजालों से अंधेरों तक अधेरों को उजालों में आते जाते देखा करते हैं

हर रात जो आंखों में गुजरी अपनी मर्ज़ी की नहीं जिम्मेदारियों की बताया करते हैं

बस अब उम्र भर आग लगा, सिलवट आग को बड़ी होकर छोटी चोट को नासूर बनते देखा करते हैं

ज़िंदगी आसान नहीं सीखाती है, आपकी कहानी सुनकर हमेशा याद करते हैं

बस मां इन हाथों को पकड़ कर फिर से शुरू होने की शुरुवात करते हैं

वहीं जरदोजीं की चादर ओढ़ लेना मां, मुझे आपकी पसंद का अलता सजाना है

वहीं बाग में लेकर आपकी रूह क़ैद को फिर से बाहर घुमाना है

नई दुनियां को पुरानी को बदलाव दिखाना हैं

चलो तसल्ली है आपके दिल से निकलती मुस्कुराहट को दिल में सजाना है

चलो मां फिर से अलता लगाना है….

सबसे सुंदर ख़्वाब मेरा मां के हाथों में फबता देखना है…

चलो मां उमर को छोड़ दो ….

वही किशोरी वाली हंसी दिखा दो ना मां….

सीखा दो ना मां…..

चलो हंसो ना मां…

एक बार सब भूल कर फिर से तैयार हो जाओ ना मां…

अलता लिए खड़ी हूं मैं मां, जरदोजीं की चादर ओढ़ लो ना मां….

और नहीं लिख पाऊंगी मां…

आपकी कहानी सुनकर रो जाती हूं मां…

आपकी जैसी हिम्मत सब्र कहा से लाऊं मां…

आपसे मिली हिम्मत सेमेटी है मां….

चलो अब थोड़ा सा हंसो ना मां….

 

©हर्षिता दावर, नई दिल्ली                                               

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