लेखक की कलम से
समय …
समय तू कितना बदल गया,
देख आदम घर में ठहर गया |
आज वीरान पड़ी ये ओ डगर,
कभी गुलजार होते देखा गया |
देखा लगते कभी खुशी के मेले,
दरकीनार हम से आज हो गया |
न जाने ओ लम्हा कब आएगा,
मरहूम को जन्नत कब बनाएगा |
सिसकते बिलखते नापे डगर तू,
ओ रोटी हमें तो रोज याद आएगा |
रुलाते है ओ सभी देखे मंजर हमे,
छीने कितने माँ के नयन तारे तूने |
समय बेरुखी मुजलिम लगने लगा,
बिता लम्हा ये आज याद आने लगा |
न जाने किस जुल्म के सजा पा रहे,
बंदियों की तरह आज कैद घर मे हुए |
जहाँ में ओ अमन चैन कयामत रहे,
तेरे रहमत परवरदिगार सलामत रहे |
©योगेश ध्रुव, धमतरी, छत्तीसगढ़