लेखक की कलम से

मुक़द्दर में मेरे मेरी बिटिया …

 

मुक़द्दर में मेरे प्यारी सी बिटिया लिखी

उसकी यादों से मैं आज बोल उठी

उसकी हल्की सी आहट सुन मैं चहक उठी

मुक़द्दर में मेरे प्यारी सी बिटिया लिखी

ये कहती थी मेरी माँ..

 

तुझ से ही आलौकित मेरी दुनियां सारी कहती थी

रग-रग में मेरी मुक़द्दर मेरी बिटिया रहती कहती थी

नूर बन के महकती तू घर में चमकती कहती थी

मुक़द्दर में मेरे प्यारी सी बिटिया लिखी

ये कहती थी मेरी माँ..

 

फूल सरीकी खिल जाती हौले से मुस्कुराती बिटिया

मुस्कुराहटों के बीच सम्पूर्ण गमों को भूला जाती बिटिया

अपनी सुगंध को फैला मेरी दुनियां सारी बसाती बिटिया

मुक़द्दर में मेरे प्यारी सी बिटिया लिखी

ये कहती थी मेरी माँ..

 

दूर बहुत दूर रहने पर भी हर पल यादों में बसती थी

मेरे साथ तो तू हमसाया सा महसूस होती थी

तेरे अहसासों से मन खुश हो प्रीत सुगंध सी होती थी

मुक़द्दर में मेरे प्यारी सी बिटिया लिखी

ये कहती थी मेरी माँ..

 

दुनियां की सारी खुशियां मुझे मिले,बस ये कहती थी

उष्ण तपन न लगे दुःखो की,बस ऐसा वो कहती थी

जीवन भर खुशियां बसे मेर, बस बार बार वो कहती थी

मुक़द्दर में मेरे प्यारी सी बिटिया लिखी

ये कहती थी मेरी माँ..

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद                                             

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