लेखक की कलम से

वतन के नाम …

गीत

 

अपनी सेवा में मुझको भी ले लो वतन ,

रख दूं चरणों में सिर को भी हँसते हुए ।

अपने जीवन का हर पल भी दे दूँ तुम्हें,

कब से हसरत हैओ मन में ये बसते हुए ।।

 

अपनी सेवा में …………………….

 

तेरा दामन जो गलती से दुश्मन छुए,

कर दूँ टुकड़े वही पल में कसते हुए ।

अपने दुश्मन के प्राणों को यूँ छीन लूँ,

जैसे विषधर चले सब को डंसते हुए ।।

अपनी सेवा में…………………..

 

ऐ वतन तुझ पर जाँ यूँ निछावर करुँ,

कोई समझे ना कीमत यूँ सस्ते हुए ।

आए काया तिरंगे में लिपटी मेरी ,

जाऊँ सबके दिलों में यूँ धँसते हुए ।।

 

अपनी सेवा में मुझको………………

 

जब चले मेरी अर्थी ना रोना कोई,

देश की माटी सर पर यूंँ मलते हुए ।

जब जलेगी चिता में ये मिट्टी मेरी,

सोंधी खुशबू उड़ेगी महकते हुए ।।

 

अपनी सेवा में मुझको भी ले लो वतन,

रख दूँ चरणों में सिर को भी हंसते हुए।।

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