लेखक की कलम से

पेड़ों की अद्भुत ज्ञानी तुलसी गौडा…

देखा जाए तो अपने देश के हर दौर में महिलाओं की प्रतिमाएं अलग अलग रूप में उभर कर आई हैं।   चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों न हो ,  उन्होंने  अपना लोहा मनवाया है  और अपने हर काम और अपनी उपलब्धियों से  अपना और देश का गौरव बढाया है । ऐसा नहीं है कि केवल महानगरों में रहनेवाली  महिलाएं ही कुछ बेहतर काम कर रही हैं।  देश के दूर दराज इलाकों में  रहने वाली महिलाएं भी कुशल गृहणी होने के साथ बेमिसाल काम करके अपनी कुशलता का प्रदर्शन कर दुनिया को चौंकाया है।

इसकी एक मिसाल तुलसी  गौडा हैं। कर्नाटक के होनाल्ली गांव की  आदिवासी महिला तुलसी पिछले साठ सालों में एक लाख से अधिक पेड़ लगा चुकी हैं । आज वे 72 वर्ष  की हो गई हैं। तुलसी  अम्मा सामान्य हैं और उन्होंने कहीं से भी सामान्य शिक्षा नहीं ली है । परंतु शिक्षित होने का प्रमाण कोई डिग्री से नहीं बल्कि अपने अनुभव ,  विचार, और व्यवहार पर निर्भर होता है। यह तुलसी ने साबित कर दिखाई । आज देश भर में तुलसी  अम्मा का नाम पर्यावरण  संरक्षण की सच्ची प्रहरी के तौर पर लिया जाता है ।  पेड़ पौधों को कब  कैसी देखभाल की जरूरत होती है इसे वे अच्छी तरह से समझती हैं।

तुलसी को अपने स्वयं के बच्चे नहीं है। वे पेड़ पौधों को ही अपने बच्चे समझकर उनकी देखभाल करती हैं। तुलसी  सिर्फ पौधों को लगाना ही जरूरी नहीं समझती बल्कि उसकी तब तक  देखभाल करती हैं, जब  तक वह पेड न बन जाए । तुलसी के लगाए हुए पेड़ आज जंगलों के रूप ले चुके हैं। उन्हें जंगलों की  इंसायकलोपिडिया भी कहा जाता है ।  तुलसी के पास भले ही कोई किताबी  या औपचारिक शैक्षणिक  का ज्ञान नहीं है लेकिन प्रकृति से लगाव और पेड़ पौधों के अतुल ज्ञान के कारण उन्हें वन विभाग में नौकरी मिल गई । चौदह वर्ष  वन विभाग में नौकरी करने  के साथ साथ वह अन्य जगहों पर वृक्षारोपण करती रहीं। नौकरी से अवकाशप्राप्त करने के बाद भी उनका पर्यावरण अभियान  अभी भी जारी है ।

उन्हें इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड ,  राज्योत्सव अवार्ड  व कविता मेमोरियल अवॉर्ड समेत कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है । तुलसी अम्मा को अवॉर्ड पाने से अधिक खुशी पेड पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने से ही मिलती है । तुलसी ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण की देखभाल पर अर्पित के दिया।। तुलसी अम्मा  अपने जीवन को पर्यावरण का ही हिस्सा  मानती है ।

तुलसी का पेड लगाने का अभियान तब से शुरू हो गया जब तुलसी ने बचपन में विकास के नाम और जंगलों की कटाई देखी।  यह बात उसके दिल की गहराई तक गई ।  आगे भी लगतार होने  वाली कटाई से वह दुःखी रहने लगी। उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने पेड पौधे लगाने का संकल्प  किया । 72 वर्ष की उमर के पड़ाव पर भी तुलसी आराम नहीं कर रही बल्कि वे हरियाली  बढाने और पर्यावरण सहजने के अभियान में जुटी हैं।

भारत सरकार ने  तुलसी गौडा को इन उपलब्धियों के लिये हाल ही में पदमश्री से नवाजा  है ।  पेड पौधे और  पर्यावरण के बारे में तुलसी के पास बडे-बडे वैज्ञानिकों को चकित कर देने वाला अतुल ज्ञान है ।  हर पौधों की विभिन्न प्रजातियों के बारे उनके पास जानकारी है। इनके अलावा उनके औषधीय लाभ के बारे में भी गहरी जानकारी रखती हैं। इसी ज्ञान  की वजह से प्रतिदिन कई लोग उनसे पेड पौधो की जानकारी लेने आते हैं।  पदमश्री अवॉर्ड मिलने के बाद भी तुलसी अम्मा के जीवन में कुछ खास बदलाव नहीं आया है । आज भी गरीब परिवार से संबंध रखनेवाली  तुलसी अम्मा अपना खाना   चुल्हे पर बनाकर सामान्य जीवन जी रही हैं।

तुलसी अम्मा हमारे लिये एक सचमुच मिसाल है, जो बिना किसी स्वार्थ के पर्यावरण बचाने का काम  कर रही हैं और 72 वर्ष की आयु में भी प्रकृति के  संरक्षण को लेकर काफी सजग हैं। आमतौर पर एक सामान्य व्यक्ति अपने संपूर्ण जीवनकाल में एकाध या दर्जन भर से अधिक पौधे नहीं लगाता है, लेकिन तुलसी को पौधे लगाने और उसकी देखभाल में अलग किस्म का आनंद मिलता है। आज भी उनका पर्यावरण संरक्षण का जुनून कम नहीं हुआ है। तुलसी गौड़ा की खासियत है कि वह केवल पौधे लगाकर ही अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाती हैं, अपितु पौधरोपण के बाद एक पौधे की तब तक देखभाल करती हैं, जब तक वह अपने बल पर खड़ा न हो जाए। वह पौधों की अपने बच्चे की तरह सेवा करती हैं। वह पौधों की बुनियादी जरूरतों से भलीभांति परिचित हैं। उन्हें पौधों की विभिन्न प्रजातियों और उसके आयुर्वेदिक लाभ के बारे में भी गहरी जानकारी है। पौधों के प्रति इस अगाध प्रेम को समझने के लिए उनके पास प्रतिदिन कई लोग आते हैं।

-हेमलता म्हस्के

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