लेखक की कलम से

वसुंधरा …

 

 

बरखा की बूंदों से माटी को महकते देखा है ।

हां ..तभी मैंने ‘वसुंधरा’ को हंसते हुए देखा है ।

 

खग तरुवर जब होते प्रमुदित

मिलकर गाते स्वागत गीत

हां ..तभी मैने ‘वसुधा’को हंसते हुए देखा है ।।

 

झांके जब किरणें सुनहरी ।

बिछ जाती गलीचा हरी हरी ।

हां ..तभी मैने ‘अवनि’ को हंसते हुए देखा है ।।

 

बेबाक बहे जब पवन ।

पक्षी उड़े उन्मुक्त गगन ।

हां.. तभी मैने ‘अचला’ को हंसते हुए देखा है ।।

 

डटे रहे देशहित जवान ।

हिय हो मातृभूमि मान ।

हां ..तभी मैने ‘रत्नवती’ को हंसते हुए देखा है ।।

हां ..मैने वसुंधरा को हंसते हुए देखा है ।।

 

©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़                 

Back to top button