लेखक की कलम से

संकट …

अपनी शक्ति का ही ज्ञान नहीं,

घुट रहा हूँ पल पल भान नहीं,

विषपान करूँ जीता हूँ मगर,

देखो कितना कमजोर हूँ मैं।

नहीं कोई स्वतः अन्यायी हूँ,

बनाता भविष्य की खाई हूँ,

तजता ही नहीं भ्रष्टाचारी,

अंदर तक रिश्वतखोर हूँ मैं।।

सेवक को बिठाकर सर रखता,

मैं खुद आप ही ईश्वर गढता,

दूजे का हक हंसकर लेता,

कर्मों से अपने चोर हूँ मैं।।

खुद पर बीते न तो मौन रहूँ,

संकट में भी न मैं सत्य कहूँ,

आदत में स्वतः लाचारी है,

क्या सच में आदमखोर हूँ मैं।।

एक दिन में जो बदले भारत,

फायदे की जो तज दे फितरत,

तोडकर चुप्पी इक बार कहूँ,

हिला दे सत्ता वो शोर हूँ मैं।।

©श्रद्धान्जलि शुक्ला अंजन, कटनी, मध्य प्रदेश         

Back to top button