लेखक की कलम से

अपनी तरफ…

 

 

ज़रूरी नहीं कि खूबियाँ ही

आकर्षित करती हैं हरदम,

कभी-कभार कमियाँ भी

खींचती हैं अपनी तरफ।

 

भरोसा और हक़ मिले

इश्क़ में ज़रूरी तो नहीं,

कभी-कभी बेवफाई भी

खींचती है अपनी तरफ।

 

बात मुझसे ही करो

ये ज़रूरी तो नहीं,

तेरा हँसना दूसरे संग

खींचता है अपनी तरफ।

 

तारीफ़ वो करती थी मेरी

शायरी की हर दफा,

हर दफ़ा अब उसका खीजना

खींचता है अपनी तरफ।

 

ख़ताओं से जिसकी मैनें

निभाया था रिश्ता सदा,

खतावार कहने की अदा

खींचती है अपनी तरफ।

 

बेवफाओं की महफ़िल में

तुम चमकती हो सदा,

तुम्हारा यूँ नज़रें चुराना

खींचता है अपनी तरफ।

 

©डॉ. प्रज्ञा शारदा, चंडीगढ़           

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