लेखक की कलम से
माँ …
शब्द नहीं कि लिख दूँ “माँ”
तू सुंदरतम एहसास है
मेरे रोम-रोम हर कतरे में
तू हर पल मेरे पास है
माँ तुमसे ही धरा मिली
तुमसे मिला आकाश है
ममता समर्पण की मूरत
तू सृष्टि की परिभाष है
आँचल में तेरे जन्नत है
आँखें तेरी हैं दया का दर्पण
कर न पाऊँ ऋण चुकता
गर कर दूँ साँसें भी अर्पण
आस है तू अभिलाष भी
जीवन का हर उल्लास है
एक वही नसीबों वाला
“माँ” धन जिसके पास है
©विभा देवी, पटना