लेखक की कलम से

मजदूर …

 

 कभी ईंटे उठाता।

 कभी तसले ,

मिट्टी के भर -भर ले जाता।

 

 पीठ पर लादकर ,

 भारी बोझे,

 वह चंद सिक्कों के लिए ,

एक मजदूर ,

कितना मजबूर हो जाता।

 

ना सर्दी ,

ना गर्मी से घबराता।

मजबूरी का ,

फायदा ठेकेदार उठाता।

 

इतने पैसे ……नहीं मिलेंगे।

मन मारकर ,

जो देना है ……….!!!!!!!!

दे दो मालिक ,

कह कर चुप रह जाता।

 

 मजदूर अपनी,

 मेहनत का ,

 आधा हिस्सा भी ना पाता।

 कितना मजबूर होकर रह जाता।‌।

©प्रीति शर्मा, सोलन हिमाचल प्रदेश

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