लेखक की कलम से

सुख के साथी ….

जीवन की शुरुआत हुई ही थी बात 2002 की है दोनों बच्चे का एडमिशन होना था समीर , संध्या को लेकर फरीदाबाद आया ,आते ही संध्या सबकुछ अपना दायित्व संभाल ली थी जिंदगी अपनी गति से चल रही थी लेकिन अभी एक महीने गांव से आये हुए हुआ ही था और कंपनी बंद हो गई सारे लोग निकाले जा रहे थे माहेश्वरी जी से बात करने पर पता चला कि समीर का नाम छंटनी वाली लिस्ट में नहीं है तो दोनों ने चैन की सांस ली। एक सप्ताह बाद शाम के समय संध्या बच्चों को लेकर बाहर निकली थी तभी समीर का एक दोस्त आया नमस्ते किया काफी खामोश या यूँ कहे कि दुखी सा लग रहा था वह कुछ देर इधर -उधर की बातें की फिर चला गया संध्या भी सभी बच्चे जो खेल रहे थे वहां जाने लगे तो अपने दोनों बच्चे के साथ घर आ गई, तभी समीर का एक दोस्त आया और बोला भाभी आपको कुछ पता चला संध्या ने कहा नहीं तो क्यों क्या हुआ?

लेकिन उसने कुछ नहीं बताया चुप हो गया, उसकी चुप्पी देखकर संध्या सशंकित हो उठी उसने पुछा कहीं आज कंपनी से मेरे समीर की छंटनी तो नहीं है समीर ठीक तो है, वह दोस्त कुछ नहीं बताया भारी कदम से चला गया थोड़ी देर बाद समीर घर आया और दोनों बेटे को पकड़कर तेज आवाज में रो पड़ा संध्या किचन से दौड़कर आई आते ही दोनों बच्चे को संभाला और समीर से पुछने लगी क्या हुआ ,क्यों रो रहे हैं आप ..ये सुनते ही समीर ने कहा मेरी जाँब चली गई है मै अभी बच्चों को लाया था पढाने के लिये किंतु मै बेरोजगार हो गया ये कहते ही फुटफुटकर वह रोने लगा।

संध्या ने दोनों बच्चे जो क्रमशः दो वर्ष और दूसरा चार वर्ष का था दोनों को पलंग पर बिठाया और खुद समीर के पास आ गई जिसका देह इस वक्त कांप रहा था पत्ते की तरह वह आते ही लिपट गई और तेज आवाज मे कहा चुप हो जाइये बच्चे के सामने इस तरह मत रोइये ये डर जाएंगे आपको मेरी कसम है सब ठीक हो जाएगा धीरे-धीरे समीर ने कहा नहीं मै तो अभी -अभी बहन की विदाई मे खूब सारा कर्जा लिया वह कैसे चुकाऊंगा ,संध्या खामोश हो गई आपने पहले क्यों नहीं बताया मुझे , फिर भी कोई बात नहीं मुझे नाम बताइये उसका मैं बात करुंगी आप घबराइये मत आप कल से नौकरी ढूंढिये मैं तबतक ट्यूशन वगैरह करके घर चला लूंगी लेकिन आप हिम्मत से रहिये और फिर संध्या ने पास ही शिप्रा जी जो स्कूल चलाती थी उससे तभी मिली और बच्चे का एडमिशन और खुद वहीं पर टीचिंग करने लगी।

साथ ही समीर को सुबह -सुबह लंच तैयार करके दोपहर मे खाने के लिए साथ मे देकर इंटरव्यू के लिये भेजती खुद 12 बजे तक स्कूल में पढाने लगी इस तरह घर का खर्चा निकलने लगा तभी घर से फोन आया आ जाओ यहां संध्या ने कहा नहीं पीहर नहीं जाउंगी ससुराल से अगर फोन आएगा तो बच्चों के साथ चली जाउंगी क्योंकि बच्चे छोटे हैं इतनी पढाई घर पर मै भी करवा दूँगी लेकिन इतने सारे पैसे कर्जा नहीं तोड़ पाउंगी

कई महीने बीत गए ना ससुराल से फोन आया ना ही कहीं जाँब मिली संध्या अब घर पर ट्यूशन भी करने लगी जिससे घर चल जाता था लेकिन अंदर ही अंदर डर रही थी ननद का द्विरागमन मे इतना सारा कर्जा जो ले चुके थे वह कैसे चुकाएगी ?

ऊधर समीर भी परेशान था क्योंकि उसके घर के लोगों ने बिल्कुल नाता तोड़ लिया था ना कोई फोन , ना कोई चिट्ठी समीर को लग रहा था कि घरवालों का वास्तविक स्वार्थी रुप देखकर संध्या ताना मारेगी लेकिन संध्या बिल्कुल चर्चा भी नहीं करती थी कभी उन लोगों का क्योंकि वह जानती थी कि वे सभीलोग सिर्फ सुख के साथी हैं।

 

@सुप्रसन्ना , जोधपुर

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